अनुभूति के आलावा ईश्वर के बारे में आयोजित ज्ञान सिर्फ पाखण्ड हो सकता है
जैसा तुम ईश्वर को जानते हो‚ ईश्वर बिल्कुल वैसा ही है‚ क्या आवश्यकता है इससे ज्यादा जानने की‚ और जब तुम्हारी चेतना का स्तर स्वतः जागृत होगा तुम ईश्वर के बारे में सब जान जाओगे। ईश्वर के अस्तित्व का समझना चेतना के विकास की एक क्रमिक प्रक्रिया है जिसके क्रम में समय के साथ स्थिति स्वयं स्पष्ट होती जाएगी और बिना चेतना स्तर के बिना आयोजित ज्ञान सिर्फ पाखण्ड हो सकता है क्यों कि ईश्वर के बारे में मनुष्य शरीर में रहते हुए जितना जाना जा सकता है उसकी अंतिम सीमा मौन है। ईश्वर के अन्य अस्तिव के बारे में शब्दों से बोलना पाखण्ड है।
नीरज चित्रवंशी🙏🙏
No comments