अनुभूति के दृष्टिकोण से संयुक्त परिवार
"गुलाब के बगीचों को
इसलिए खतम न होने दो
की उसमें कांटे बहोत है।"
पारिवारिक स्तर पर विघटन
विघटित होते होते शांति की तलाश में व स्वयं को सम्पूर्ण सत्य मानने के भ्रम में, इतने गहरे में विघटित होगा। जहां से वापसी सम्भव नहीं होगी, और विघटन की इसी निरंतरता के क्रम में, एक दिन व्यक्ति स्वयं के भीतर अंतर्द्वंद के झंझावतों में, एकल रहकर भी शान्त व खुश नहीं रह पाएगा।
आवश्यकता है विषमताओं के साथ
सामंजस्य की न कि विघटन की।
"गुलाब के बगीचों को
इसलिए खतम न होने दो
की उसमें कांटे बहोत है।"
जिस स्थिति से भागोगे, वह अपने आप में और गहरी व जटिल होती जाएगी।
जिन असंतुलन में जीने की जिद होगी।
वहां जीने की कला भी विकसित होगी।
विघटन का असर जब भीतर तक जड़ हो जाता है, तो अपना भी अप्रिय नजर आता है। संयुक्तता की विषमताएं कितना भी विचलित करें विघटन कभी समाधान नहीं हो सकता।
देखो अपने पूर्वजों के जीवन की किताब को
जिसके हर पन्ने पर उन्होंने सांजस्य की कहानी
व स्वयं के त्याग, जिम्मेदारी व कर्तव्य की कथा
लिखी है।
क्या उनका मन नहीं ऊबा रहा होगा, क्या उन्हें कभी टूटन नही हुई होगी पर उन्होंने सभी को साथ लेकर जिया।
#nirajchitravanshi ✍️
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