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कभी सेनापुर गांव आये थे विश्व बैंक के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष

# कभी सेनापुर गांव आये थे विश्व बैंक के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष
इतनी बड़ी हस्ती के आगमन पर गौरवान्वित रहा है जौनपुर

गुरू-शिष्य के प्रेम ने खिंची है अमेरिका-सेनापुर की लाइन
उन्हीं के नाम से जाना जाता है बजरंगनगर-अकबरपुर मार्ग
जौनपुर। कालान्तर से लेकर आज तक जनपद जौनपुर देश ही नहीं, बल्कि विश्व के मानचित्र पर अपना अलग स्थान रखता है लेकिन शासन-प्रशासन की उपेक्षापूर्ण कार्यशैली से जनपद की ऐतिहासिकता धुंधली होने लगी है। इसी कड़ी में जनपद के केराकत तहसील क्षेत्र के सेनापुर गांव की ऐतिहासिकता भी अतीत के आईनों में विलुप्त होती नजर आ रही है।
मालूम हो कि गुरू-शिष्य की परम्परा के अटूट बंधन को कायम रखते हुये विश्व बैंक के अध्यक्ष राबर्ट मैकन मारा एवं उपाध्यक्ष डेविड हापर सेनापुर गांव में आये थे जो गांव सहित पूरे जनपद के लिये गौरव की बात रही है। उनकी आगवानी के लिये तत्कालीन जिलाधिकारी नीरा यादव ने वाराणसी-आजमगढ़ मार्ग पर स्थित बजरंगनगर से अकबरपुर का मार्ग बनवा दिया जो आज भी उन्हीं के नाम से जाना जाता है।
बता दें कि सेनानियों व वीरों की धरती कही जाने वाली सेनापुर में जन्मे डा. आरडी सिंह अमेरिका में कार्नर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे। वहीं के निवासी राबर्ट मैकन मारा से उनकी दोस्ती हो गयी जो अटूट बंधनों में बंध गयी। वर्ष 1953 की बात है जहां उनके शिष्यों में न्यूयार्क के निवासी डेविड हापर भी थे।
कुछ समय उपरान्त जब डेविड हापर की इच्छा पीएचडी करने की हुई थी तो गुरू के इच्छानुसार डेविड हापर पीएचडी करने सेनापुर में आ गये। अपने 10 साथियों के साथ यहां पीएचडी किये जहां उन लोगों के रहने के लिये सेनापुर कालेज में बनाये गये कमरों में आज भी अवशेष दिखायी पड़ते हैं। तकरीबन 1 महीने का समय बिताने के बाद वे वापस अमेरिका चले गये। समय बीतने के बाद राबर्ट मैकन मारा विश्व बैंक के अध्यक्ष व डेविड हापर उपाध्यक्ष बन गये।
विश्व बैंक का उपाध्यक्ष होने के बाद हापर अपने सेनापुर से प्रेम को भूले नहीं थे। सन् 1981 में वह अपने गुरू डा. आरडी सिंह सहित सेनापुर के ग्रामीणों से मिलने की इच्छा जाहिर किये। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने गुरू से सलाह-मशविरा से अप्रैल 1981 में भारत आने के लिये प्रधानमंत्री कार्यालय में पत्र भेजा।
तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी ने विश्व बैंक के अध्यक्ष से दिल्ली में रूकने के लिये कहा लेकिन उन्होंने दिल्ली में रूकने की बजाय सेनापुर में रूकने की बात कही। इसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय से जिलाधिकारी कार्यालय पत्र आया तो पूरे जनपद में खलबली मच गयी। तत्कालीन जिलाधिकारी नीरा यादव ने लगातार 27 दिन रहकर सेनापुर गांव जाने के लिये अकबरपुर से बजरंगनगर का सड़क निर्माण कराया जिसे आज भी मैकन मारा के नाम से जाना जाता है।
प्रो. आरडी सिंह के पुत्र अवकाशप्राप्त कर्नल हर्षवर्धन सिंह सहित कुछ लोगों ने बताया कि आज भी ग्रामीणों को वह गौरान्वित पल याद है। अधिकारी उनकी सेवा के लिये कैसे पलके बिछाये खड़े थे। 7 दिन रहने के बाद मैकन मारा व डेविड हापर वापस चले गये परंतु अफसोस होता है कि गुरू व शिष्य की वह ऐतिहासिक मिलन इतिहास के अतीत के पन्नों में केवल दर्ज होकर रह गयी।
इस बाबत पूछे जाने पर ग्रामवासी विनोद कुमार ने कहा कि इतिहास को अगर लोग भूलते हैं तो इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करती है। ऐसा इसलिये वह कहने को मजबूर हैं, क्योंकि ऐतिहासिक गांव होने के बावजूद भी आज यह सरकारी संसाधनों में पूरी तरह से उपेक्षित है। सरकार को चाहिये कि गुरू व शिष्य की इस मिलन को एक यादगार और स्मरणीय स्वरूप तैयार करे जिसे देखकर या सुनकर आने वाले पीढ़ियां कुछ सीख सकें। उक्त मिलन सेनापुर को ही नहीं, बल्कि पूरे जौनपुर को गौरवान्वित करती है। उक्त मिलन भारतीय इतिहास के कभी न भूलने वाली स्वर्णीय अक्षरों लिखा जाना चाहिये था। यहां का शहीद स्मारक अपनी ही दुर्दशा पर आंसू बहाने को मजबूर है। अफसोस होता है ऐसी राजनीति पर जहां केवल सत्ता पाना ही देशसेवा माना जाता है।
इसी क्रम में ग्राम प्रधान रमेश कुमार ने बताया कि यह ऐतिहासिक गांव है। ग्राम प्रधान होने के नाते मैं शासन-प्रशासन से निवेदन करना चाहूंगा कि इस गांव में अस्पताल हो, अच्छी शिक्षा व्यवस्था हो। गांव में स्थित शहीद स्मारक का जीर्णोद्धार सही तरीके हो। इसके अलावा तमाम मूलभूत सुविधाएं होनी चाहिये। प्रो. आरडी सिंह के नाम को एक नयी पहचान दिलायी जाय।
गांव के ही संतोष सिंह ने बताया कि हमारे गांव का इतिहास आज अतीत के पन्नों में दर्ज है लेकिन ऐतिहासिक मिलन का गवाह बने इस गांव की सुविधाएं नगण्य है जो शर्मसार है। यहां अंग्रेजों ने डोभी के 23 वीर शहीदों को एक साथ एक ही दिन फांसी देकर अपनी क्रूरता का परिचय दिया है।
अवकाशप्राप्त कर्नल हर्षवर्धन सिंह ने बताया कि जब विश्व बैंक के अध्यक्ष मेरे पिता जी से मिलने के लिये दिल्ली आने के लिये कहे तो पिता जी ने उनसे दिल्ली मिलने के बजाय सेनापुर में मिलने को कहा। वह पिता जी की बातों को मानकर यहां मिलने आये। उस समय सेनापुर भारत के मानचित्र पर चमकता हुआ सितारा जैसा था। जो लोग विदेश से दिल्ली आते थे, वे कहते थे कि हमें सेनापुर जाना है परंतु आज की परिस्थितियों को देखें तो लोग सेनापुर आकर पूछते हैं कि हमें सेनापुर जाना है। कुल मिलाकर यह हम सभी के लिये दुर्भाग्य की बात है।

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