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मानवता की सेवा व रक्षा करना सबसे बड़ा धर्मः कथा वाचक


 

samadhannews 365 # Niraj Kumar Srivastava

मानवता की सेवा व रक्षा करना सबसे बड़ा धर्मः कथा वाचक
चौकियां धाम में चल रहे कथा के दूसरे दिन उमड़ी भारी भीड़
चौकियां धाम, जौनपुर। स्थानीय क्षेत्र में स्थित शीतला चौकियां धाम में चल रहे संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन प्रवचन के दौरान महाराष्ट्र से पधारे कथा वाचक राम मोहन महराज ने बताया कि मानवता की सेवा करना ही सबसे बड़ा धर्म है जो सभी धर्मों में श्रेष्ठ है। दीन-दुखियों की सेवा, असहाय की सहायता, पीड़ित का उपचार, गरीब बहन-बेटियों की शादी में सहयोग करना चाहिए। जीवन में ऐसे सत्कर्म करने वाले लोगों पर परमात्मा की कृपा दृष्टि हमेशा बनी रहती है। जो किसी पीड़ित, परेशान, बीमार को देखकर अपनी पीड़ा समझकर उसकी सेवा रक्षा करता है, ऐसे मनुष्य को जीवन में कोई भी कठिनाई परेशानी नहीं होती। ऐसे लोगों के जीवन में परमात्मा की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहती है। सभी जीव, जंतु, पेड़-पौधे, सृष्टि परमात्मा की बनाई हुई है। सभी जगह उनका निवास है। परमात्मा ब्रम्हाण्ड के कड़-कड़ में विराजमान हैं। राजा परीक्षित शुकदेव मुनि जी के संवाद प्रसंग का वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि पाण्डव के पुत्र अर्जुन, अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु, अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा जो राजा विराट की पुत्री थी। युद्ध में गुरु द्रोण के मारे जाने से क्रोधित उनके पुत्र अश्वत्थामा ने क्रोधित होकर पांडवों को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया लेकिन वे पांडव न होकर द्रोपदी के 5 पुत्र थे। जान-बूझकर चलाए गए इस अस्त्र से उन्होंने उत्तरा को अपना निशाना बनाया। अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा उस समय गर्भवती थी। बाण लगने से उत्तरा का गर्भपात हुआ जिससे परीक्षित का जन्म हुआ। परीक्षित जब बड़े हुये तो नाती-पोतों से भरा-पूरा परिवार था। सुख एवं वैभव से समृद्ध राज्य था। वे जब 60 वर्ष के थे। एक दिन वे क्रमिक मुनि से मिलने उनके आश्रम गये जहां उन्होंने आवाज लगाई लेकिन तप में लीन होने से मुनि ने प्रति उत्तर नहीं दिया। राजा परीक्षित स्वयं का अपमान मानकर निकट मृत पड़े सर्प को क्रमिक मुनि के गले में डालकर चले गये। अपने पिता के गले में मृत सर्प को देख मुनि के पुत्र ने श्राप दे दिया कि जिस किसी ने भी मेरे पिता के गले में मृत सर्प डाला है, उसकी मृत्यु 7 दिनों के अंदर सांप के डसने से हो जाएगी। ऐसा ज्ञात होने पर राजा परीक्षित ने विद्वानों को अपने दरबार में बुलाया और उनसे राय मांगी। उस समय विद्वानों ने उन्हें सुखदेव का नाम सुझाया। इस प्रकार सुखदेव मुनि जी का आगमन हुआ जिन्होंने परिक्षित को सही रास्ता बताया। संगीतमय कथा विस्तार देते हुए महाराज ने श्रोताओं को मंत्र-मुग्ध कर दिया। कथा के मुख्य अतिथि अजीत चौधरी सचिव नवीन मण्डी समिति चौकियां धाम एवं विशिष्ट अतिथि शिवा वर्मा संस्थापक/अध्यक्ष पन्ना लाल स्वतंत्रता सेनानी और प्रीतम सोनी रहे। साथ ही अन्य अतिथियों में रिंकू सिंह, मुकेश श्रीवास्तव आदि रहे। बता दें कि सप्त दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा प्रतिदिन शाम 7 बजे से रात्रि 10 बजे तक चल रही है जहां तमाम लोगों की भीड़ उमड़ रही है।

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