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किसी के व्यवहार में स्वयं का स्थान ढॅूढना अनावश्यक खोज व असंतुष्टि का मार्ग है #niraj_chitravanshi

 


किसी के व्यवहार में स्वयं का स्थान ढूँढना यह पूर्वनिधारित मनःस्थिति है जिसके प्रभाव मे इंसान दूसरो के व्यवहार में स्वयं का स्थान ढूँढता है। 

ऐसा इंसान स्वंय के पूर्वनिर्धारित मनोदशा अनुसार दूसरों के व्यवहार में अपने द्वारा सुनिश्चित किए गए स्थान को ढूँढता है जो कि किसी भी दशा में अन्य की मनोदशा की कार्बन कापी नहीं हो सकती है  

मौलिक रूप से व्यक्ति की मानसिक संरचना ही ऐसी है कि वह सर्वप्रथम सिर्फ स्वयं के स्थान के बारे ही सोच सकता है दूसरे का स्थान उसकी उपयोगिता‚ आवश्यकता पर निर्भर करता है जो व्यक्ति जितने काम का होगा उसे उतनी ही वरीयता‚ स्थान‚ मान सम्मान मिलता है एक ऐसा व्यक्ति जिसमें कोई सामर्थ्य ही न हो उसे कोई अपनी जिंदगी में कोई स्थान क्यों देगा ? 

जबकि उक्त विचारधारा के हिसाब से जीवन जीना पूरे समााज को दूषित करने का कार्य करता है। 

उदाहरण के तौर पर यदि एक व्यक्ति सिर्फ 

अपनी उपयोगिता व आवश्यकता के व्यक्ति से ही संबंध रखता है

तो वह इस क्रम में कुछ ऐसे संबंधों की उपेक्षा भी करता है 

जिसे किसी भी प्रकार से उपेक्षित नहीं रखा जाना चाहिए‚ 

पर इन्हें दूर रखा जाता है तो ऐसे में स्वाभाविक है 


ऐसा उपेक्षित व्यक्ति सामान्य तो नहीं रह सकता 


उसके व्यवहार में परिर्वतन आना स्वाभाविक है 

वक्त क्या भरोसा कि कब किसी राजा को रंक बना दे 

या कब किसी रंक को राजा बना दे 

और किसी की उपेक्षा करने वाले व्यक्ति का दिन 

दुर्भाग्य वश यदि कभी बुरा हुआ 

तो उपेक्षित व्यक्ति यदि हृदय विराट या उदार स्वाभाव हुआ तभी

वह साथ खड़ा होगा अन्यथा

वही काटना पड़ेगा जो बोया गया हो

अतः एक सद् बुध्दि को सर्वदा हर किसी से अच्छा व्यवहार ही करना चाहिए 

ताकि आपके सम्पर्क में आने वाला हर व्यक्ति आपसे कुछ अच्छा ही सीख कर जाय

और यदि हर इंसान अच्छा  ही व्यवहार करे तो सारे एक दूसरे से अच्छा पाकर अच्छा ही देगें। 


 यदि बुरा व्यवहार देगा तो अपवाद स्थिति को छोड़कर बुरा ही पाएगा


आज सबसे ज्यादा समझदार होने की गफलत हर किसी को हो चुकी है।

जिसके प्रभाव में लोग अतिविश्वास में नासमझियाँ करते हैं।

और जो सबसे ज्यादा उपयोगी समझ में आता है उसे ही अपने व्यवहार में 

उचित स्थान देता है।

वहीं दूसरा व्यक्ति जो हर किसी के व्यवहार में स्वयं का स्थान ढूँढता फिरता है ।

वह वास्तव में एक अनावश्यक खोज में लगा हुआ होता है।

कालान्तर वह रिश्तों से असंतुष्टि का कारण बन जाती है।


वहीं एक उच्च पदस्थ‚ सामर्थ्यवान‚ धनाठ्य से सभी संबंध में रहना चाहते हैं जैसे कि जरूरत के वक्त पर काम आ सके।

वास्तव में व्यक्ति भविष्य की आशंकाओं से बंधा होने की वजह से ऐसा व्यवहार करता है

 भविष्य क्या लेकर आएगा ये किसी को पता नहीं 

लेकिन सम्भावनाओं की गणना करते हुए व्यक्ति 

अपने संबंधों को उपयोगिता के समय हेतु सुरक्षित करता है 

इसी वजह से सामर्थ्यवान‚ सक्षम की ज्यादा  पूछ होताी है


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