गगरी छूटी, पनघट छूटा
गगरी छूटी, पनघट छूटा
छूटा घर परिवार
बदल चुकी अब नारी धूरी
नाप रही संसार
घर आंगन है सूना दिन भर,
बच्चों का छिन गया प्यार।
स्वतंत्र हुई नारी पर ढोती,
दो पाटों का भार।
घर की ममता,
बाहर की चिंता।
उठा पटक में ढूंढ रही है,
खुद के जीवन का सार।
नमन तुम्हें, हे नारी शक्ति
जो तू सह लेती है हर भार.…🙏
No comments