थोथा चना बाजे घाना" AI
ये दो अक्षर का AI भारतीय अर्थव्यवस्था के A से Z तक चाहे GDP हो या PCGDP हो सबकी खाट खड़ी करने वाला है। प्रकृति से लेकर भारतीय भौतिक व्यवस्था तक सब दिशाहीन GDP को क्या खाक ठीक कर पायेगा।
मुद्रा स्फीति की दर , विकास के अनुमानित लक्ष्य को क्या खाक प्राप्त कर पायेगा।
"थोथा चना बाजे घाना"
"टाट में पैबंद"
कब तक लगाया जाता रहेगा।
भगवान ही मालिक है।
दुनियाँ के देशों की ओर गौर करो तो भारत अन्य देशों को सस्ते में सर्विस बेचने में लगा हुआ है जबकि अन्य देश प्रोडक्शन, रीसर्च & डेवलपमेंट में लगे हैं जिससे देश बुनियादी तल पर समृद्ध होता है, और हमारी शिक्षा व्यवस्था में बड़ी संख्या में बस कहने मात्र को इंजीनियर है, इनसे बस बेसिक स्तर के कुछ काम जिसकी इन्हें ट्रेनिंग दी गयी है, वही हो सकता है, ट्रेनिंग के बाहर कुछ सॉल्व करने को कह दिया जाय तो टाँय टाँय फिस्स है।
बेचारे करें भी तो कैसे?
जो पढ़ा है वही तो हो पायेगा।
इनकी भी क्या गलती,
इन्हें तो पढ़ लिखकर बस
कमाना बचपन से ही सिखाया जाता रहा है।
माता पिता भी मजबूर हैं उनके पास भी वही रास्ते है। जिस पर सभी चलने को मजबूर हैं।
जीने के लिए पैसा हर हाल में चाहिए,
जिस रास्ते का बाजार है, उसी ओर
पैरेन्टस का जाना मजबूरी है।
जिस देश की बुनियादी शिक्षा व्यवस्था ही अंधी हो
उस देश की जनता बेचारी करे भी तो क्या करे।
सरकारो की निगाहें कम्पनियों द्वारा लिए जा रहे, कार्य पर है ही नहीं कि हमारे देश की युवाओं से क्या काम लिया जाता है, उसमें हमारे बच्चों के बौद्धिक विकास की क्या संभावनाएं हैं।
हमारे देश के युवाओं को पैकेज का लालच देकर उनकी क्षमताओं को सिर्फ बेसिक कार्यो तक ही सीमित रखा जाता है।
अमेरिका भारत से IT की बेसिक सर्विसेज
सस्ते दरों पर खरीदता है क्योंकि उसे वहां के "हाई स्किल इंजीनियर्स" करने को तैयार नहीं थे, अर्थात जो उनके स्तर के नीचे का बेसिक काम था, उसे करने का ठेका सस्ते दरों में WIPRO, TCS आदि कंपनियों ने ले लिया, अब साहब भारत में हो गई IT की धूम, देश की बकरियां मैं मैं करने लगी, हर घर इंजीनियर की भरमार हो गई।
एक तो AI वैसे ही जान लेने पर तुला है, दूसरे ट्रम्प ने अमेरिकन टैक्स पॉलिसी ही बदल डाली, जहां बाहर के देशों से काम कराने में अमेरिकन कंपनियों को टैक्स में छूट मिलती थी, अब बाहर से काम कराने वाली कंपनियों पर टैक्स लगा दिया, यानि भारत से IT की जिन सर्विस को औने पौने में खरीदा जाता था, अब वह सारी सर्विसेज अमेरिकन कंपनियां भारत से नही बल्कि खुद अमेरिकन कंपनियों से ही कराएगी। अब जब बाहर से काम ही नहीं आएगा तो स्वाभाविक है कि कंपनियां छटनी शुरू कर देंगी, सत्य तो यह है कि छटनियाँ हो भी रही हैं।
भगवान (राजनीति) ही मालिक है भारत का।
अब भी समय है, प्रोडक्शन, रिसर्च & डेवलपमेन्ट पर जमीनी सत्यता की निश्चितता में जोर दिया जाना चाहिए, वैश्विक बाजार में सर्विस बेचने से नहीं सामान बेचने से भारतीय अर्थव्यवस्था में स्थिरता और निश्चितता आएगी । नीतियां ऐसी होनी चाहिये जिससे कि भारतीय उत्पादों के एक्सपोर्ट को जमीनी बढ़ावा मिले। सिर्फ कागजी नहीं।
हर घर उत्पादन होना चाहिए, पूरा विश्व भारत उत्पादित सामानों का बाजार होना चाहिए।
भारतीय अर्थव्यवस्था तभी समृद्ध हो सकती है।
और जब नीतियां समृद्ध होंगी
तो जनता खुद बखुद समृद्ध होगी।
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