परंपराएं हमारी धरोहर हैं

परंपराएं तोड़ देना बहोत आसान है।

पर परंपराओं को तोड़ देना कितना उचित है।

इस बात को समझ पाना बेहद जटिल है।

परंपराओं का आधार सतही नहीं, 

परंपराएं अपने आप में व्यापक मूल्यों के संरक्षा की बुनियादी अवधारणा होती हैं इस अवधारणा की गहराई को समझ पाना आधुनिकता के अंधकार के बस की बात नहीं। परंपराएं हमारी धरोहर हैं, आज भी इनकी प्रासंगिकता अतुलनीय हैं, परंपराएं ही वह आधारभूत दूरदर्शी अनुशासन हैं, जो हमें, हमारे दायरों की लक्ष्मण रेखा दिखाती हैं, जिसके बाहर हमारी युवा पीढियां अंधकार के दलदल में डूबती जा रही हैं, और हम समय के साथ बदलाव के लिए जरूरी मानते हुए आधे अधूरे मन से युवा पीढ़ियों के समर्थन में खड़े होने को मजबूर हैं।

परंपराओं को तोड़ने की नहीं अपितु और गहरा करने की आवश्यकता है। अपने पारम्परिक अनुष्ठानों के अनुसरण में जीना ही शांति आर सुकून दे सकता है।


हाँ कुरीतियों को अवश्य तोड़ा जाना चाहिए। परन्तु आधुनिकता की बयार की बौराहट में भटकते युवाओं को आदर्श रास्ता हमारी परम्पराएं ही दिखाती हैं।


#nirajchitravanshi 

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