भ्रष्टाचार रूपी भस्मासुर का संहार
"शिक्षा एवं स्वास्थ्य विभाग के भ्रष्टाचार रूपी भस्मासुर का संहार किए बगैर नहीं हो सकता- भारत का विकास"" -----------प्रो.अखिलेश्वर शुक्ला
जिस देश में शिक्षक को नियुक्ति से लेकर सेवानिवृत्ति तक कार्यालयों में टेबल -टेबुल का चक्कर लगाना पड़े। जिस देश में जन्म लेने से मृत्यु तक मिलावटी खाद्य पदार्थ, नकली दवाओं के साथ जीवन जीने के लिए मजबुर होना पड़े। उस देश को विकसित, डिजिटल या अग्रणी भूमिका में लाना कितना मुश्किल काम है -आसानी से सोंचा समक्षा जा सकता है।
जिस देश में शिक्षक अर्थात गुरु जो किसी भी राष्ट्र का निर्माता भाग्य विधाता होता है।उसे अपने हाल पर छोड़ दिया गया हो। ताज्जुब होता है जब सेवा निवृत्त शिक्षक से पेंशन पञावली के पीछे पीछे दौडने, निदेशक उच्च शिक्षा के कार्यालय तक पहूंचने से लेकर अन्य खातिरदारी की अपेक्षा की जाती है। यही नहीं जिस संस्था में अपना पुरा कार्यकाल कुशलता पूर्वक पूर्ण करता है- वहां भी कुछ अपेक्षा के साथ महिनों पेंशन पञावली के नाम पर प्रतिक्षा कराया जाता है। निहितार्थ समक्षते हुए भी शिक्षक अपने अंतिम समय में संकोच का सामना करते हुए प्रताणित किया जाता है। राज्य निदेशालय एवं क्षेत्रीय कार्यालय भी कहीं कहीं मजबूर सा दिखता है- क्यों? समक्ष पाना मुश्किल नहीं है?
वास्तव में निजी लाभ के लिए पद/शक्ति का दुरूपयोग भ्रष्टाचार है। भ्रष्टाचार विश्वास को खत्म कर देता है। भ्रष्टाचार असमानता, अज्ञानता, गरीबी, भुखमरी, सामाजिक विभाजन (संघर्ष) एवं पर्यावरण संकट को बढ़ाने के साथ साथ राष्ट्रीय विकास में सबसे बड़ा बाधक है।
यह जानते हुए भी कि हर स्तर पर हर विभागों में पञावली/फाईलों को रोकने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ती जा रही है। इस पर नियंत्रण रखने या समय सीमा निर्धारित कर निपटारा करने सम्बन्धी कानून /दिशानिर्देश जारी क्यों नहीं किया जा रहा है। सरकार को भी यह ज्ञात होगा कि भारतीय जनता असंतोष एवं अशिक्षा से पीड़ित हैं । जिसके मूल में भ्रष्टाचार है। कार्यालय से मंञालय तक निचले स्तर से उपर तक भ्रष्टाचारियों का बोलबाला है तो उसका कारण क्या है???
प्राचीन गुरुकुल प्रणाली से मध्यकालीन मदरसा से होते हुए आधुनिक काल में जिस अंग्रेजी शिक्षा में आज का युवा पल बढ़ रहा है। उससे नैतिक मूल्यों, आदर्शों की बात करने के बजाय आर्थिक मूल्यों पर ही बात की जा सकती है।
दुर्गापूजा (नवरात्रि) के शुभ अवसर पर एक आदर्श एवं अच्छे पहल की अपेक्षा करते हुए प्रोफेसर (डॉ) अखिलेश्वर शुक्ला का मानना है कि -भारत सरकार हो या राज्य सरकारें जब तक शिक्षा ब्यवस्था में भ्रष्टाचार की समस्या को गंभीरता से नहीं लेंगी तब तक भ्रष्टाचारी ब्यवस्था में जन्म, शिक्षा एवं संस्कार प्राप्त छाञ -छाञाओं से भारत की ब्यवस्था में विकास की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। चंद संस्कारवान बच्चे, शिक्षक, नागरिक, अधिकारी, कर्मचारी, राजनेता -कुछ भी अच्छा करना चाहें तो भी नहीं कर सकते !
शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना राष्ट्रीय विकास के लिए जरूरी है। "जैसा अन्न वैसा मन" अर्थात खाद्य पदार्थो सहित अन्य मिलावट पर भी अंकुश लगाया जाना उतना ही आवश्यक है।
विश्वास है शिक्षा एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी भ्रष्टाचार रूपी भस्मासुर को समाप्त करने में सरकार त्वरित कार्रवाई करते हुए भारत को अग्रणी भूमिका में लाने का प्रयास करेगी।
जय हिन्द जय भारत! ।
✍️ प्रोफेसर (डॉ) अखिलेश्वर शुक्ला -पूर्व प्राचार्य /विभागाध्यक्ष -राजनीति विज्ञान, राजा श्री कृष्ण दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय -जौनपुर (उत्तर प्रदेश)


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