अनुभूति के आलावा ईश्वर के बारे में आयोजित ज्ञान सिर्फ पाखण्ड हो सकता है


 जैसा तुम ईश्वर को जानते हो‚ ईश्वर बिल्कुल वैसा ही है‚ क्या आवश्यकता है इससे ज्यादा जानने की‚ और जब तुम्हारी चेतना का स्तर स्वतः जागृत होगा तुम ईश्वर के बारे में सब जान जाओगे। ईश्वर के अस्तित्व का समझना चेतना के विकास की एक क्रमिक प्रक्रिया है जिसके क्रम में समय के साथ स्थिति स्वयं स्पष्ट होती जाएगी और चेतना की सिद्धि के बिना ईश्वर को जानने का आयोजित ज्ञान पाखण्ड हो सकता है क्यों कि ईश्वर के बारे में मनुष्य शरीर में रहते हुए जितना जाना जा सकता है उसका एक मात्र रास्ता मौन है, ईश्वर है कि नहीं है, यह परिस्थितियों से उपजी जिज्ञासा है, जब नियति चाहेगी तुम स्वतः ही ईश्वर को जान लोगे।

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