"बदलते संसाधनों के प्रभाव" में "बदलता मन का विज्ञान"
आज के मोबाइल युग की डिजिटल दुनिया में अनैच्छिक रूप से इकट्ठा हो रहे, छोटे छोटे टुकड़ो में, बिखरे ज्ञान से, उत्पन्न विचारों की अनियंत्रित बाढ़, इस कदर अतिविश्वासी वृत्ति में जकड़ती जा रही है कि आने वाले समय में विचारों से भरा हुआ अतिविश्वास, छलकने की आतुरता में बस बोलना पसंद करेगा।
अर्थात सर्वत्र सर्वज्ञता के भ्रम में आदेशात्मक वृत्ति का बोल बाला होगा। सुना बस उन्हें जाएगा जिन्हें किसी न किसी स्वार्थ, भय या दबाव में सुना जाना जरूरी होगा।
वो भी सहनशीलता के अतिसीमित दायरे के उस पार अकल्पनीय विरोध के खतरे से बाहर नहीं होगा।
#nirajchitravanshi ✍️


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