जानिए पतंगबाजी पर बैन की जरूरत.....को लेकर क्या कहा एस. एस. पब्लिक स्कूल के निदेशक विश्वतोष नारायण सिंह ने
यद्यपि NGT के आदेशानुसार चायनीज मांझे की खरीद फरोख्त व भंडारण पूर्णतः प्रतिबंधित है। इसके बावजूद चोरी छिपे चल रही खरीद फरोख्त दर्दनाक घटनाओं का सबब बन रही है। अतः शासन प्रशासन से अनुरोध है कि पतंगबाजी को ही प्रतिबंधित करने पर विचार करें। न रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी।
पतंगबाजी पर अंकुश जितनी जल्दी हो सके लगना चाहिए
कब तक यूँ ही गर्दनें कटती रहेंगी?
इधर कुछ वर्षों से चाइनीज़ मांझे का प्रचलन बेहिसाब बढ़ गया है। रंगीन, चमकीला और सस्ता
.....लेकिन इसकी धार लोगों की गर्दन पर चलती है। हर साल हज़ारों घटनाएं सामने आती हैं, जिनमें सड़क पर चलते लोग अचानक इस खतरनाक मांझे की चपेट में आकर बुरी तरह घायल हो जाते हैं। कई तो अपनी जान तक गंवा बैठते हैं।
जौनपुर। हालिया घटना जौनपुर की है। शास्त्रीपुल(नया पुल) जौनपुर, उत्तर प्रदेश , पर एक पिता अपने बच्चे को स्कूल छोड़कर घर लौट रहे थे। गोमती पुल से गुजरते समय उनकी गर्दन चाइनीज़ मांझे में फंस गई। चोट इतनी गहरी थी कि उन्हें बचाया नहीं जा सका।
घर लौटा तो सिर्फ़ दुःख, पिता नहीं।
सोचिए… एक मनोरंजन किसी का जीवन छीन ले.....क्या यह स्वीकार्य है?
पतंग उड़ाने के दौरान जोखिम सिर्फ़ मांझे से ही नहीं होता।
बच्चे छतों से गिर जाते हैं,
पतंग लूटते समय सड़कों पर पतंग के पीछे बेतहाशा दौड़ाते बच्चे दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं,
कई घायल होते हैं, कई तो जान से हाँथ धो बैठते हैं।
कई वर्षों से सरकार और जनता दोनों इस समस्या को रोकने में असफल रहे हैं।
चाइनीज़ मांझे पर प्रतिबंध लगाया जाता है, लेकिन बाजार में चोरी-छिपे बिक्री जारी रहती है। त्योहार आते ही लोग सुरक्षा भूलकर वही जानलेवा मांझा खरीद लेते हैं।
अब सवाल यही है: अगर नियम लागू नहीं हो पा रहे, बाजार नियंत्रित नहीं हो रहा और हादसे थमने का नाम नहीं ले रहे....तो क्या पतंगबाजी पर ही सख्त रोक नहीं लगनी चाहिए?
कम से कम तब तक, जब तक इस खेल को सुरक्षित बनाने की गारंटी न हो जाए।
क्योंकि किसी बच्चे की खुशी किसी दूसरे की जान से बड़ी नहीं हो सकती। और कोई भी त्योहार, कोई भी शौक, किसी की असमय मृत्यु का कारण नहीं बनना चाहिए।


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