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इंसानियत

# इंसान होने की सार्थकता 
कोई दीन हीन‚ मजबूर या मानसिक स्तर पर अस्थिर व्यक्ति दिखाई देता है तो कैसा महसूस होता है? ये व्यक्तिगत अनुभव का विषय है और ऐसे व्यक्ति में परिवर्तन आपके छोटे से प्रयास से (बिना खुद की दिनचर्या में हस्तक्षेप के)  हो सकता है और सुकून का स्तर ईश्वर का साक्षात्कार करने जैसा होता है इंसान को इंसान होने का मतलब समझ में आता है‚ मानव जीवन की सार्थकता समझ में आती है‚ स्वयं के लिये तो हम हर पल जीते हैं जानवर भी जीता है‚ हम मानव हैं प्राणी मात्र नहीं----इंसानियत का भाव रखना सिर्फ इंसानों का सौभाग्य है‚ और पुण्य कार्य करके हम अपने सौभाग्य को आत्मिक स्तर पर समृद्ध‚ शान्त व सन्तुष्ट बना सकते हैं .....और हम जब आत्मिक रूप से समृद्ध महसूस करते हैं तो तभी इंसान होने की सार्थकता सिद्ध हो पाती है.....

एक व्यक्ति अपने घर से दूर नौकरी करता था इसकी वजह से नाश्ते व खाने के लिए उसे होटल का सहारा लेना पड़ता था वह व्यक्ति प्रतिदिन ऑफिस के लिये तैयार होता था और पहले होटल जाकर नाश्ता करता था .... एक दिन की बात है जब वह व्यक्ति प्रतिदिन की तरह होटल पहुँचा तो देखता है कि एक व्यक्ति दुर्बल सा गरीब और लाचार सी स्थिति में होटल मालिक से होटल के बाहर से ही बात कर रहा था वह होटल मालिक से कुछ खाने के माँग रहा था परन्तु होटल मालिक उसे दुत्कार कर भगा देता है ....वह व्यक्ति अपनी सीट पर बैठा सबकुछ देख रहा था नाश्ता करने के पश्चात वह एक और पैकेट लेता है और भुगतान करते हुए बाहर निकलता है ......और देखता है कि व भूखा व्यक्ति एक पेड़ के नीचे होटल की ओर मुँह करके बैठा था वह व्यक्ति खाने के पैकेट उस भूखे व्यक्ति को दे देता है भूखा व्यक्ति कुछ देर के लिये ये क्या हो रहा है कि दृष्टि से देखता रहा फिर खाने का पैकेट लेकर खाना खाने लगा और वह सज्जन व्यक्ति अपनी आॅफिस की ओर चला गया ।
दूसरे दिन फिर वही घटना घटित होती है आत्मिक रूप से समृद्ध व्यक्ति अपने पहले दिन वाली बात को दुहराता है साथ ही उससे कुछ प्रेरणादायी बातें भी करता था और ऐसा निःस्वार्थ भाव से प्रतिदिन करता रहता है ......

एक दिन अचानक तस्वीर का रूख बदला सा नई जिन्दगी की खुशियों के साथ‚ मानवता के स्त्म्भ के सहारे‚ अपने पैरों पर पूरे विश्वास व जीत के भाव से‚ कृतज्ञता प्रकट करते हुए‚ नम ऑखों से‚ साफ सुथरे कपडे में‚ अपने जीवित भगवान से लिपट जाता है और भावुक होकर फफक पड़ता है ......और उस दिव्य आत्मा से कहता है कि भैया कल मैं यहाँ नहीं आ पाऊँगा मुझे कल से काम पर जाना है.....

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