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हमारे गला फाड़ने से पहले मोदी नेतृत्व हर प्रकार से सक्षम है भरोसा रखिए

                   चीन से दूध व उसके उत्पादों के आयात पर ...

जौनपुर । 
समाधान न्यूज 365: 
नीरज कुमार श्रीवास्तव# 


हमारे गला फाड़ने से पहले मोदी नेतृत्व हर प्रकार से सक्षम है भरोसा रखिए ...
बात बात में लोग ये कहते दिखाई देते हैं कि चीन का हुक्का पानी बंद करे सरकार चीनी उत्पादों पर प्रतिबंध लगाए सरकार
महानुभावों जरा चीन के भारतीय निवेश पर नजर तो डालिए और जमीनी सच जानने की कोशिश करिए
पढ़िए और विचार करिए
* जिस हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन कि डिमांड अमेरिका ने भारत से किया था उसका कच्चा माल एक्टिव फ़ार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट्स (एपीआई) भारत चीन से आयात करता है
* भारत की दवा बनाने वाली कंपनियां क़रीब 70 फ़ीसदी एपीआई चीन से आयात करती हैं। और ऐसे तमाम कच्चे माल हैं जिस पर भारत की पूर्ण निर्भरता है।
* चीन ने भारत में छह अरब डॉलर से भी ज़्यादा का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कर रखा है
* मुंबई के विदेशी मामलों के थिंक टैंक 'गेटवे हाउस' ने भारत में ऐसी 75 कंपनियों की पहचान की है जो ई-कॉमर्स, फिनटेक, मीडिया/सोशल मीडिया, एग्रीगेशन सर्विस और लॉजिस्टिक्स जैसी सेवाओं में हैं और उनमें चीन का
बड़ा निवेश है
* भारत की 30 में से 18 यूनिकॉर्न में चीन की बड़ी हिस्सेदारी है. यूनिकॉर्न एक निजी स्टार्टअप कंपनी को कहते हैं जिसकी क़ीमत एक अरब डॉलर है‚ तकनीकी क्षेत्र में निवेश की प्रकृति के कारण चीन ने भारत पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया है।
* सामरिक चीनी निवेश पर भारत सरकार थोड़ा सतर्क थी. हाल ही में उसने अपनी नई प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) नीति को यह कहकर टाल दिया कि भारत के साथ ज़मीनी सीमा से जुड़े देशों के सभी निवेशों को निवेश से पहले मंज़ूरी की आवश्यकता होगी।
* इस नए जनादेश ने चीनी पूंजीपतियों की चिंता थोड़ी बढ़ा दी है. लेकिन यह फ़ैसला उस निवेश को प्रभावित नहीं करेगा जो अप्रैल से पहले हो चुका है. चीनी निवेश की जाँच करने की नई भारतीय नीति के बावजूद, भारत में चीन की मौजूदगी हर जगह दिखती है।
इस दवा का कच्चा माल जिसे एक्टिव फ़ार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट्स (एपीआई) कहते हैं, चीन से आयात किया जाता है. या दूसरी निर्यात की जाने दवा क्रोसीन, जिसका एपीआई पैरासीटामॉल भी चीन से आता है. असल में, संसद में भारत सरकार के एक बयान के मुताबिक़, भारत की दवा बनाने वाली कंपनियां क़रीब 70 फ़ीसदी एपीआई चीन से आयात करती हैं।
साल 2018-19 के वित्तीय वर्ष में देश की फर्मों ने चीन से 2.4 अरब डॉलर मूल्य की दवाइयां और एपीआई आयात किए।
दवाइयों के निर्यात के मामले में भारत दुनिया के शीर्ष देशों में से एक है. देश का दवा निर्यात 2018-19 में 11 प्रतिशत बढ़कर 19.2 अरब डॉलर हो गया है. इसमें जेनेरिक दवाएं भारतीय फ़ार्मास्युटिकल क्षेत्र का सबसे बड़ा हिस्सा हैं और कमाई के मामले में इनका मार्केट शेयर 75 फीसदी है. काफ़ी हद तक चीनी एपीआई पर निर्भरता भी इसकी वजह है. भारत चीनी कच्चे माल को प्राथमिकता देता है क्योंकि यह बहुत सस्ता है और सामग्री वहां आसानी से उपलब्ध है।
इससे दो विरोधी देशों की आपस में निर्भरता भी झलकती है। एक बात यह भी सत्य है कि चीन में कच्चा माल उपलब्ध कराने वाली कंपनियां भारत के फ़ार्मास्युटिकल निर्माताओं के बिना चल नहीं पाएंगी।
लिस्ट बड़ी लंबी है इसलिए सारांशतः समझिए
भारत में चीनी निवेश का मकड़जाल इतना फैला हुआ है कि हम अचानक से चीनी उत्पादों के प्रतिबंध की बात सोच भी नहीं सकते यदि इस प्रतिबंध को झेलने की स्थिति में भारत होता
तो यकीन मानिए मोदी एक ऐसा नेतृत्व है जिसने अब तक चीन बैंड बजा दिया होता परन्तु वर्तमान में सिर्फ कूटनीतिक व्यवहार ही देश हित में है
इन्हीं विपरीत परिस्थियों में रहते हुए देश की व्यापारिक‚ आर्थिक‚ सामरिक‚ आंतरिक‚ संवैधानिक‚ सामाजिक‚ धार्मिक‚ राजनैतिक‚ कूटनीतिक इत्यादि तमाम गतिविधियों पर पैनी नज़र रख कर ही देश को चलाया जा सकता है और ये सब मोदी नेतृत्व में हो रहा है भरोसा रखिए
मोदी के अपील को समझिए आत्मनिर्भर बनिए
और हाँ
हमारे फ्लैक्स प्रिटिंग या प्रिटिंग प्रेस का कार्य करने से‚ न्यूज पोर्टल चलाने से या रेडीमेड गारमेंट की दुकान से या दवा की दुुकान खोलने से या लॉड्री खोलने से या होटल खोलने से या पेट्रोल पम्प खोलने से या स्कूल खोलने इत्यादि से भारत आत्मनिर्भर नहीं बनेगा
भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए विदेशों से आयातित उत्पादों के उत्पादन पर फोकस करना होगा
लोकल व वोकल होना होगा ....
फिर लगा लेना जितना भी चीन प्रतिबंध का नारा लगाना हो : नीरज
शहादत पर श्रद्धाजंलि

( भरोसा रखिए शहादत व्यर्थ नही जाएगा : मोदी )




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