विकास ही विनाश का रास्ता
इंसान की बुद्धि ही इंसान के अस्तित्व लिए सबसे विचित्र खतरा है जिसे निगलना भी मुसीबत है उगलना भी मुसीबत है।
पहले तो इंसान ने स्वयं को विकास की विवधताओं में उलझाया, प्रकृति प्रदत्त में मनचाहा लालची भाव मिलाया, तरह तरह के कृत्रिम स्वाद बनाया, मनमाना मिलावटी मिश्रण तैयार कर स्वाद पिपासा को बढ़ाया, अप्राकृतिक अशुद्ध खाया, फिर बीमार हुआ फिर खुद ही इलाज कराया अब इलाज के लिए मेडिकल साइंस दिन ब दिन नए नए खोज कर रही है।
बीमारी हो ही ना इस पर शोध करने के बजाय बाजारीकरण पर शोध कर रही है, विकार विहीन नही अपितु व्याधियों के साथ जीवन भर दवा पर जिंदगी कैसे चले इस पर विनोद कर रही है।
पूंजीवाद से गांठ जोड़ कर रही है।
मरीज को मारने नहीं देंगे पर बिना दवा जीने भी नहीं देंगे।
अब जीना है तो रोज मरना होगा।
स्वस्थ रहने के लिए पहले खाने का तीन डोज था अब खाने के साथ दवा का भी उतना ही डोज होगा।
विकास का कोई जब तक निश्चित पड़ाव नहीं होगा।
विकास ही खुद की
बेपरवाह मंजिल पर
विकास का ही अवसान होगा।
#writer #nirajchitravanshi
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