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#दोस्ती #friendship

दोस्ती शब्द का अनौपचारिक विच्छेद 

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यूँ तो "दोस्त" शब्द का 

औपचारिक संधि विच्छेद

दः + अस्त = दोस्त है ।

परंतु इसका एक अनौपचारिक नियम के दायरे से बाहर (दोस्ती के बीच नियमों का कोई दायर नहीं होता हमारे अंतस की अनियमितताएं ही हमे किसी का दोस्त बनाती हैं, और दोस्ती ही वह स्थान है जहां हम अकेले होने जितना स्वतंत्र होते हैं किसी प्रकार का यहां कोई संकोच नहीं होता, इसीलिए लगभग हर इंसान के जीवन में कोई न कोई दोस्त होता है, दोस्त ऐसा संबंध है जहाँ इंसान अपनी आवारगी की चरमसीमा बिंदास जीता है, दोस्त अपने दोस्तों के साथ वो सब कुछ करता है जो वह अपने माता पिता भाई या बहन या किसी अन्य रिश्ते में नहीं कर सकता है। जैसे ही हम दोस्ती से दूर होते है स्वाभाविकता से दूर बस आर्टिफिशियल होते हैं वही दिखावटी व्यवहार, वही मीठी बात वही झूठी तारीफ ) विच्छेद किया जाय तो

"दोस्ती"

दो शब्दों में टूटता है

दो - सती 

अर्थात 

दो के बीच का सतीत्व भाव 

जब एक दूसरे के प्रति 

निर्विकार, निःस्वार्थ भाव मे 

समर्पित होते हैं ।


एक संबंध का सृजन होता है जिसे

"दोस्ती"

कहते है।


यूँ तो दोस्त बड़ा कमीना होता है।

पर इनके जैसा कोई और कहीं ना होता है।

कभी मुसीबत में पड़ जाओ

तो पीछे मुड़कर देखना 

या वहीं खड़ा होता है

यूँ तो ये हमारे खून के रिश्ते में नहीं होता है

पर ये खून के रिश्ते से भी बड़ा होता है।


ढूंढ डालो सारे जमाने में

खुशियां चाहे जितनी

जमीन पर जन्नत का नाम सुना है ना

ये दोस्ती के सिवा कहीं और

कहीं ना होता है।

यूँ तो दोस्त बड़ा कमीना होता है।

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#writer #nirajchitravanshi


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