"विनम्रता" कोई वस्तु नहीं
जिसे किसी पॉकेट या पर्स में रखकर विनम्र हो जाया जाय।
विनम्रता, तो वह प्रभुवत भाव है।
जहां विनम्रता अभिमान शून्य अवस्था में
समर्पण भाव से,
हृदय को जल तरंगों की मीठी धुन से झंकृत करती,
उगते सूरज की लालिमा में नहाई हुई,
चिड़ियों की चहचहाती कर्ण प्रिय ध्वनि,
जैसे घट घट को स्वतंत्र निर्विकार जीवन जीने हेतु
आत्मीय भाव से आमंत्रित कर रही हों।
विनम्रता यानि सरलता का वह शिखर बिंदु
जो सबकुछ को समभाव से स्वीकारने,
निर्छल मुस्कान भरी,
सर्वस्व के स्वागतार्थ समर्पित सद्भाव,
जिसके पैरों की थाप से उद्धरित संगीत गुंजन,
कानों में मधुरता के रस घोलती,
बरबस ही हृदय की समस्त विह्वलता शांत करती,
स्वतः घटित होने वाली घटना सा,
मानो फलों से लदी वृक्ष की टहनियां दात्री भाव में,
अदब से झुकी हुई स्वयं के अस्तित्व की आकांक्षा से परे,
द्रष्टा भाव में विलीन,
मान सम्मान, पद प्रतिष्ठा आदि से विरक्त,
जीवनदायी पवन की भाँति
निःस्वार्थ मनोदशा से अपना सबकुछ
न्यौछावर कर देना चाहती हों।
"विनम्रता" दोनों हांथो की, कमर तल के अग्र स्थान पर,
घड़ी के पेंडुलम सी लटकती बंधी मुट्ठी,
व चेहरे पर कृत्रिम रूप से आच्छादित
अतिमासुमियत से भरी खामोशी की
छद्म शारीरिक मुद्रा मात्र नहीं है।
अपितु यह अंतस पर सर्श्व ग्राह्यता का शुभ भाव है।
"विनम्रता"
सबकुछ देकर भी बदले में कुछ भी नहीं चाहती।
इसका वरण आसान नहीं,
यह अपेक्षा विहीन विरक्त अंतस भाव है,
जिसे जीने के लिये भीतर साक्षी भाव में
एकल एकतरफा स्नेही होना होगा।
इसके वरण हेतु सघन विकारी स्थितियों को भी
फूलों के खुशबू की भाँति जीना होगा।
जो स्वतः हवा के प्रवाह में तैरती,
मन मस्तिष्क को सुगंधित कर जाती हैं।
अर्थात "विनम्रता"
बिना किसीके विरोध में हुए,
चंदन सी खुशबू सा सच्चा स्नेह है,
जो किसी भी विकार का वरण कर,
उसे निर्मल भाव से विकार विहीन
आत्म परिवर्तन में सहयोग करता है।
#Writer
#nirajchitravanshi
#niraj
#nirajkumar
#neeraj
#srivastava
#chitravanshi
समस्त संसाधनों का सादर आभार
जहां से कुछ अच्छा सीखने मिलता है,
स्वयं भाव में स्वलेख, माँ सरस्वती का आशीर्वाद बनता है।
No comments