क्रोध आपके काबू में होगा।
बस एक संकल्प जिसे संस्कार बना लिया तो
क्रोध आपके काबू में होगा।
बस गुस्सा आते ही स्वयं को शून्य कर देना,
आसान नहीं पर असंभव भी नहीं!
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गुस्से की मद्धिम ज्वाला भीतर
हर वक्त सुलगती ही रहती है।
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क्या आपने कभी गौर किया है कि
अचानक से गुस्सा क्यों फूट पड़ता है,
एकदम से आग में घी डालने जैसा"
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जब किसी अप्रिय व्यवहार को बार बार दुहराया जाय तो गुस्सा आना स्वभाविक है और यही व्यवहार यदि लंबे समय तक दुहराया जाय तो यह आग में घी जैसा काम करता है।
वास्तव में आज की तनावग्रस्त जीवन शैली में गुस्सा एक अनजान संस्कार बनकर हर जीवन का हिस्सा बन चुका है जिस गुस्से की मद्धिम ज्वाला भीतर हर वक्त सुलगती ही रहती है और ऐसे में कोई अप्रिय व्यवहार ही क्रोध की अग्नि को भड़काने के लिए काफी है।
ये बात सच है कि जो व्यवहार अनजाने में हमारा संस्कार बन जड़ हो चुका हो उसे नियंत्रित कर पाना इतना आसान नहीं है, परंतु प्रयास किया जाय तो असंभव भी संभव होता है।
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गुस्से को तो नहीं रोका जा सकता,
हां एक छोटे से अभ्यास या प्रयास से इस गुस्से की तीव्र ऊर्जा को कहीं और केंद्रित किया जा सकता है, इसके लिए सबसे पहले भीतर उठे गुस्से को बाहर लाने से बचना होगा।
मन में उठने वाले गुस्से को यदि मन मे ही दफन कर दिया जाय तो बाहर इसके विरोध के संघर्ष से बचा जा सकता है।
क्यों कि गुस्सा जैसे ही बाहर आएगा उसका प्रत्युत्तर भी होगा और प्रत्युत्तर का यह संघर्ष गुस्से को नियंत्रित करने के बजाय और गहरा कर देगा।
गुस्से के संघर्ष से बचने के लिए सबसे पहले उस स्थान से तुरंत हटना चाहिए चाहे जैसे भी हो।
जब कोई व्यक्ति गुस्से में होता है तो वह व्यक्ति उस स्थान को छोड़ना नहीं चाहता और हर बात को गहराई से सुनकर उस पर विरोध जताता है।
जबकि इस संघर्ष में दोनों को एक दूसरे की बात सुनने से वंचित कर दिया जाय तो इस संघर्ष से बचा जा सकता है।
और गुस्सा आये ही ना इस विषय पर निरंतर संकल्प की प्रक्रिया में #स्वसत्संग के निरंतर अभ्यास से गुस्से से निवृत्ति का संस्कार मन मे जड़ करना होगा। जिससे योग, ध्यान व साधना की एक अवस्था में विनम्रता के संस्कार के साथ गुस्सा आने की मनोवृत्ति से छुटकारा मिल जाता है।
यदि आप ऐसा कर पाए तो इसके निरंतर अभ्यास की प्रक्रिया में आप अपने गुस्से या क्रोध को नियंत्रित करने का संस्कार बना सकते हैं।
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अनंत शुभकामनाएं🙏🌷❤️
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