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ईश्वर की अनुभूति होने के स्तर तक

 #ध्यान का अर्थ खो जाना नहीं अपितु #जग जाना है। स्वयं की #अनुभूति के तल पर जागृत होना और इस जागरण के शिखर की ओर बढ़ते हुए #ईश्वर की अनुभूति होने के स्तर तक पहुंचते हुए, परम पद की अनुभूति में घुल जाना ही ध्यान कहलाता है।


ध्यान के परम पद तक पहुंचने के बीच की समग्र #अवस्थाएं सीढ़ी दर सीढ़ी अंतस स्थल यानि #मन #स्थान पर एकाग्रता सीखाती हैं। 


जहाँ सांसारिक आँखे खुले होने के साथ ही "मन की आंखे" भी #जागृत रहने,  खुले रहने, की पुष्ट परिपक्वता प्राप्त कर चुकी होती हैं।

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"जाग जाने" का आशय #अहसास को जगाने से है, अहसास को पुष्ट करने से है, जैसे घर के अन्दर बैठे होकर भी #बाहर किसी के होने का अहसास कर पाना हैं वैसे ही इस अहसास की #क्षमता को और गहरा करते हुए अपने इर्द गिर्द की घटित होने वाली घटनाओं के साथ ही स्वयं के जीवन में घटित होने वाली घटनाओं के #निकटतम अथवा #सूक्ष्मतम अहसास को #जगाना ही #ध्यान है, सोते रहे तो भी स्वयं के ऊपर होने वाले हमले की सुधि हो जाना ही ध्यान है, और इस #सिद्धि को ईश्वर की अनुभूति तक ले जाना ही #मोक्ष है।

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मृत्यु के बारे में अभी सोच लेना ही चाहिये, क्यों कि यह कब घटित हो जाय कुछ पता ही नहीं और इसे अभी नहीं जाना गया, तो कभी नहीं जाना जाएगा, ये मृत्यु ही है, जिसे जान लेना ही ज्यादातर जीवन में घटित नहीं होता, अर्थात जीवन जो स्थिर है ही नहीं, जो निश्चित है ही नहीं, पूरा जीवन इसीको जानने में गुजर जाता है, जो निश्चित है वह है #मृत्यु , इसे जानने की #जिज्ञासा जब जग जाए, तो जीवन परिपक्वता के उस स्थान के समीप है जहाँ मोक्ष का ज्ञान प्राप्त हो सकता है।


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पर एक बात हमेशा याद रखने की है कि मृत्यु को जानने के लिए जीवन को छोड़ना कभी भी आवश्यक नहीं होता, इस जीवन में रहते हुए, इसकी कुसंगतियाँ ही मोक्ष मार्ग या रास्ता दिखा सकती हैं इसलिए इसी दुनियां के रीतियों और कुरीतियों के साथ अंतस की जागृत अवस्था को जीने का अभ्यास सबकुछ इतना सहज व पुष्ट कर देगी की यहां की रीतियों में स्वयं अरुचि पैदा होकर विचार प्रक्रिया परमात्म अनुभूति को प्राप्त हो सकती है।


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#writer #nirajchitravanshi #nirajbharatiya 


अनंत शुभकामनाएं🙏🌷

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