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क्या इसमें भी पैसा लगता है?

 शुभकामनाएं देने में भी कंजूसी क्यों? 

क्या इसमें भी पैसा लगता है? 

अगर नहीं लगता तो मैं तो बधाई भर भर के देना चाहूंगा।

हाँ ये बात अलग है कि पैसा लगता तो ईमानदारी से कहूँगा की मात्रात्मक कमी या यूं कह सकते हैं कि शुभकामनाओं का समूल विलोप भी हो सकता था, पर गनीमत है कि अभी शुभकामनाएं महीने के मोबाइल रिचार्ज में निपट जाती हैं।


शुभकामनाएं किसी दिन विशेष के लिए ही क्यों, बाकी दिनों में भी तो शुभ ही चाहिए, खुशहाली ही तो चाहिए, शुभेच्छा में भला क्या बुराई है, इसे किसी सीमा में क्यों बांधना, 


जिसे देना है, प्रकृति की तरह अपरम्पार देना, यह सब जो प्रकृति प्रदत्त जीवनदायी है, सभी आशीर्वाद व शुभकामनाएं ही तो हैं जिसे भगवान ने देने में कोई कंजूसी नहीं की, सोचिए प्रकृति का दिया हुआ सब, किसी दिन विशेष के लिए हो जाय तो, कितनी अफरा तफरी, उथल पुथल हो जाएगा।


किसी दिन या क्षण विशेष के लिए ही शुभकामनाएं क्यों दी जाय।


आप हमेशा खुश रहें प्रसन्न रहें, आपके जीवन के लिए उचित सबकुछ ईश्वर आपको दें, या ज्यादा सही होगा।

🙏🙏🙏🌷🌷


हर दिन दीवाली हो, 

जीवन भर खुशहाली हो।


#nirajchitravanshi #नीरनीरज

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