हर पड़ाव पर अपूर्ण है
प्रेम वह लालसा है जो पूर्णता के हर पड़ाव पर अपूर्ण है।
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कोई किसी के बारे में क्या कह रहा है इस स्तर पर किसी व्यक्ति के बौद्धिक स्तर की गड़ना की ही नही जा सकती क्यों कि कहने वाला कितना बुद्धिलब्ध है, इस बात की ही कोई जमीन नहीं है, अतः कहे, सुने और समझे जाने से अलग, वास्तविकता तो कुछ और ही है और वही "ब्रम्ह सत्य" है।
एक बार एकाग्र मन से, स्वयं के जीवित होने के आयामों पर ध्यान केंद्रित करें तो ये हवाएं, हवाओं में घुली गैसें, पानी, धरती, आकाश, प्रकाश, वर्षा, पेड़, पौधे आदि सब में, ईश्वर का साक्षात्कार होता प्रतीत होगा। जैसे कोई बहोत अपना हमारे जीवन हेतु हमारे पोषण में समर्पित है....
इस ब्रम्हाण्ड का जीवनदायी सब कुछ
स्वयं के दृश्य अस्तित्व में भले ही
अलग अलग दिखाई पड़ रहा है,
एक ही परमात्म शक्ति से विघटित, कण कण में,
" ईश्वरीय अंश के रूप में प्रदीप्त है।"
जो हमें जीवित रखने के आयोजन में
हमारी लापरवाहियों के बावजूद निरंतर
हमारे जीवन रक्षा में समर्पित है।



मुस्कुराने का अभिनय चाहे जितना किया जाय।
थॉट्स यदि ऑब्जेक्ट ओरिएंटेड हैं तो,
कंपैरिजन भी जीना ही होगा।
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