भगवान को प्रत्यक्ष देखने के इच्छुक
भगवान को प्रत्यक्ष देखने के इच्छुक को भगवान की ही दी हुई आंख पर अतिविश्वास का इतना पर्दा चढ़ जाता है कि वह भगवान को ही हर गली, नुक्कड़ पर देखना चाहता है भगवान अतिशयोक्ति वृत्तियों को कभी दिखाई ही नहीं पड़ सकता क्योंकि की भगवान से ही प्राप्त शक्तियों के दंभ में अतिविश्वास को जीते हुए अनुभूति तल पर शून्य हो जाते है वहां सिर्फ अज्ञान का अंधकार होता है, भगवान इसलिये भी दिखाई नहीं पड़ते कि उनको हर अतिविश्वासी दंभी विचारों के आदर्श उत्तर को बाध्य होना होगा, जैसे कि भगवान श्रीराम को एक सामान्य से व्यक्ति के शंका के जवाब में माता सीता से अलग होना पड़ा, भगवान श्री कृष्ण को पांडवों के पक्ष में होने के बावजूद अर्जुन को बार बार संतुष्ट करना पड़ा कि जिनका वध, तुम अपना होने के मोह में नहीं करना चाहते, वो अधर्मी हैं जिसे वासुदेव स्वयं देख पा रहे थे परन्तु अर्जुन नहीं, इसके बावजूद मानव स्वभाव के अनुरूप अर्जुन ने बार बार सवाल किया।
क्या यह पर्याप्त तार्किक आधार नहीं है कि भगवान अदृश्य रहकर सही गलत का फैसला करें, सोचिये यदि भगवान इंसान के बीच आ जाएं तो वह इतने सवालों के घेरे में होंगे जिसका जवाब दे पाना मुश्किल हो जाएगा, इस लिहाज से तो अच्छा ही है कि वह अदृश्य होकर अपने अनुसार सही गलत का बिना किसी प्रश्नोत्तरी के न्याय करते रहें व जब जब धरती पर धर्म की हानि हो तो धर्म की स्थापना हेतु अवतरित होते रहें।
भगवान के अदृश्य बने रहने का सबसे पुष्ट आधार यही हो सकता है, उसकी उपस्थिति उसकी महत्ता पर प्रश्नचिन्ह हो सकती है सर्वशक्तिमान होते हुए भी मानवीय अनादर्शो का आदर्श व नैतिक उत्तर में होना ही होगा, जिसकी यातना स्वयं भगवान को आदर्श स्थापित करने हेतु सहन होगा।
बहुत संभव यह है कि भगवान स्वयं ही अपनी सर्वोत्तम कृति से भयाक्रांत हों, की ये कब कौन सा सवाल पूछ बैठे।
हालांकि सर्वशक्तिमान ईश्वर किसी भी विरोध का स्वयं दमन करने में सक्षम हैं, परन्तु साक्षात स्वरूप में ईश्वर भी इसी मानवीय कृत्यों का हिस्सा बन जाए, तो ईश्वर का क्या महत्व रह जायेगा, जैसा कि हमने देखा कि भगवान ने मानव शरीर में होने के नाते गांधारी के श्राप को स्वीकार किया, नैतिकता की स्थापना हेतु, भगवान चाहते तो उस श्राप को अस्वीकार भी कर सकते थे परन्तु मानव समाज को माता के सम्मान व उनके नेत्र होने के बावजूद नेत्रहीन रहने के तप बल की अवमानना होती, अतः भगवान ने गांधारी के श्राप को सहर्ष स्वीकार कर भगवान होने का आदर्श स्थापित किया, ऐसी दिव्य परमात्म शक्ति को सादर नमन🌷🙏 जय श्री राम, जय श्री कृष्ण, हर हर महादेव🙏🌷
#nirajchitravanshi
No comments