प्रथम का निर्माण ही
प्रथम का निर्माण ही
समग्र की उत्तपत्ति का
एक मात्र कारण है।
तुम्हारी वास्तविकता ही तुम्हारा, भविष्य निर्मित करती है, जिसकी सत्यता कारक रूप में, सिर्फ तुम्हे ही पता है यदि तुम, जड़ में सही हुए तो तुम्हारे साथ, कभी गलत नहीं होगा दूसरे का, कृत्य भले ही तुम्हारे कार्य के, फल को प्रभावित करे, पर तुम्हारी मौलिकता का प्रतिफल, आध्यात्मिक भूमि पर अवश्य ही धनात्मक ही मिलेगा।
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