मुझे पता था कि तुम या कोई किसी का नहीं पारिवारिक बंधन के सिवा
मुझे पता था कि
किसी भी वजह से,
यदि मैं तुम्हें पसंद न आया तो तुम मुझे छोड़ने या किसी को छोड़ने में वक्त नहीं लगाओगे, मैने जानबूझकर तुम्हे नाराज किया था यह जानने के लिए की क्या तुम नाराज होकर भी मेरे हो सकते हो, बात बिल्कुल सही निकली, तुमने भी नापसंदगी का बदला, तुरंत ले लिया, मैंने तुम्हारे संदर्भ को भूलने का नाटक किया था।
काश तुम भीतर का मर्म को पहचान पाते, पर विवशता है तुम्हारी तुम वहां तक जा ही नहीं सकते तुम शब्दों में सम्मान ढूंढते हो, दिखावे को वास्तविकता मानते हो, जबकि शब्दों का दायरा सिर्फ दिमाग तक ही सीमित है जबकि संबंधों की डोर दिल में बंधे बिना बहुत दूर तक जा ही नहीं सकती। सब दिमाग से संबंधों को अच्छा बने रहने के लिए जीते हैं।
इंसान ऐसे ही अत्यंत साधारण सोच का सिर्फ स्वयं की शान के अभिमान में लिप्त है।
हम बचपन के दोस्त एक दूसरे पर जान छिड़कने वाले कोई मौका नहीं चूकते
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