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सही दबाकर मन के भीतर

 [12/11, 09:13] Niraj: 


सही दबाकर मन के भीतर

बाहर मुस्कान बिखेरा है


झूठी मुस्कानों में 

जलता है मन!

चाहे मेरा है या तेरा है



[12/11, 09:22] Niraj: 

हम सत्य दबाकर, 

झूठ दिखाकर 

मीठा मीठा सब जीते हैं


[12/11, 09:33] Niraj: 

अब महफिल वहफिल का क्या करना

जब तन्हा ही जीना सीख लिया


[12/11, 10:01] Niraj: 

कुछ पसंद नहीं आया 

एक व्यक्तिगत नजरिया है

संदर्भित की वास्तविकता नहीं



[12/11, 10:04] Niraj: 

मृत्यु सबसे बड़ा सत्य है

यही कारण है कोई जीवित रहते 

सत्य नहीं होना चाहता



[12/11, 10:26] Niraj: 

सीमित इच्छा 

सर्वोच्च शिक्षा


[12/11, 10:31] Niraj: 

जो भी आसानी से हुआ जा सकता है, 

सब वही है, जो हुआ ही नहीं जा सके 

या होना कष्टकारी हो, वह कैसे सही है।

सब बुद्ध नहीं हो सकता या सब कृष्ण या राम नहीं हो सकता, 

अर्थात जो जैसा हो सकता है, वही सही है।



[12/11, 10:43] Niraj: 

समर्पण के सम्मुख 

सारा विरोध शून्य है।

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