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राइटर नीरज चित्रवंशी ।। writer nirajchitaravanshi

 जन्म से शरीर 

शरीर से इंद्रियां

इंद्रियों से दर्शन

दर्शन से विचार

विचार से महत्वाकांक्षा

महत्वाकांक्षाओं से रिक्तता

रिक्तता से कर्म

कर्म का फल 

फल की बेचैनियां

बेचैनियों से मानसिक व्याधियां व

व्याधियों से अनादर्श

का जन्म होता है।


जितनी बड़ी महत्वाकांक्षा

उतनी बड़ी रिक्तता

अब बहोत बड़ी रिक्तता

को मानवीय बुनियादी स्वभाव 

कम समय में ही प्राप्त करना चाहता है। जैसा कि आम तौर पर बहुत ही सामान्य मानवीय अभिलाषा है। 


इसी अभिलाषा में येन, केन, प्रकारेण, रिक्तता की पूर्ति, अनादर्श व अनैतिकता को जन्म देती है, जो समाजिक संरचना हेतु घातक है।


इन्हीं अनादर्श अभिलाषाओं की निकृष्टता विनाश को प्राप्त होती है,


एक युग के विनाश के उपरांत...


अब पुनः वहीं से आरंभ 

अर्थात पुनः जन्म 

अपने अंत की कहानी दुहरायेगा।

इतिहास इस बात की गवाही है।


यदि व्याधियों व उसके कारण को जान लिया गया हो और उसका उचित समय पर आदर्श समाधान किया जाय तो, युग के विनाश की कहानी, एक सुखद अंत की गरिमा को प्राप्त हो सकती है, जहां सिर्फ, नैतिकता, सत्य, आदर्श आदि समग्र सकारात्मक सर्वजन हिताय सभ्य समाज की चर्चा हो।

जैसे श्री राम के समाज की चर्चा

जैसे श्री कृष्ण के समाज की चर्चा


वैसे ही जिस युग में आपका जन्म हुआ है उसकी भी चर्चा उक्तानुसार समरूप हो।

शायद ही कोई ऐसा है कि जिस गली मोहल्ले में वो रहता हो उसके अच्छाई की चर्चा न हो पर अच्छाई की चर्चा का प्राकृतिक विधान तो यही है कि संदर्भित स्थान पर वास्तविक सच्चाई अवश्य ही होनी चाहिए।


राइटर

निराजचित्रवंशी

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