मैं सत्य का साधक हूँ
मैं सत्य का साधक हूँ ऐसा कहने के अर्थ, कत्तई ऐसा नहीं है कि मैं असत्य का विरोधी हूँ वास्तव में असत्य सत्य के सफर में सत्य की ओर है जैसे जैसे सत्य का मर्म समझ मे आता जाएगा इंसान सत्य होता जाएगा, कुछ गलत है ऐसा जानते हुए ही यदि मनुष्य गलत ही रह रहा है अर्थात उसके परिस्थियों के प्रभाव में उसके भीतर की दिव्यता निद्रावस्था में रहने को बाध्य है जिस दिन परिस्थितियों व वास्तविकता की वरीयता का ज्ञान होगा मानुष्य स्वतः सत्य होगा। उस व्यक्ति में परिवर्तन व सत्य की ओर जाने की संभावना ज्यादा होती है जो भावुक ज्यादा होता है और जो भूख होता है वह हृदय तल पर साफ सुथरा होता है ऐसे व्यक्ति के शब्दों का संयोजन किसी विशेष को खुश रखने का नहीं होता है अपितु सत्य कहने का होता है, और ऐसा व्यक्ति ऐसा मानता है कि, यदि वह सही है, तो यह सत्य व्यवहार ही सबसे बड़ा सम्मान व खुशी का विषय होना चाहिए।
मैं सत्य का साधक इसलिए नहीं हूं कि मैं कहीं भी असत्य नहीं हूं पर जिंदगी में भौतिक आवश्यकताओं को कमाते रहने के दौरान कई बार असत्य होने की ऐसी बाध्यता आती है, की असत्य न हुआ तो भौतिक आवश्यकताओं को तात्कालिक समाज, परिवार, रिश्तेदार, दोस्त, पड़ोसी इत्यादि के अनुरूप न जिया जा सके। परन्तु ज्यादातर मामलों में मैंने अपने हांथों को असत्य से दूर ही रखा परिणाम स्वरूप मेरे कार्य या सेवाएं जिसे मैं अपने बिजनेस के माध्यम से बेचता हूँ उससे मुझे हाँथ धोना पड़ा। होता ऐसा था कि किसी भी सेवा का जो भी रेट मैं सम्पूर्ण सत्यता से देता मैं महंगा साबित होता था जबकि किसी बहकावे में सत्य महंगा भले ही लगे, हर लिहाज से वह सस्ता ही पड़ता है।
इसीलिए शायद आज भी आर्थिक दृष्टिकोण से असफल हूँ।
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