तो छोड़ दो उसे।
संघर्ष को सफलताओं में स्वतः संतृप्त होने दो।
ईमानदार कोशिशों से अलग, यदि
किसी भी चीज के लिए लड़ना पड़े
तो छोड़ दो उसे।
ये जिंदगी लड़ने के लिये नहीं,
यदि किसी भी चीज के लिए लड़ ही जाते हैं, तो
उसकी एक बड़ी वजह यह भी हो सकती है कि
स्वयं के पास कोई अन्य विकल्प ही नहीं।
"लड़ो नहीं छोड़ो और आगे बढ़ो"
क्योंकि लड़ जाना, स्वयं की सोच को दूषित करने जैसा है और यह लंबे समय तक व्यवहार का हिस्सा बना रहा तो व्यवहार की वास्तविक मिठास, विनम्रता ही जाती रहेगी।
प्रतिभा कभी छीनने का भाव हो ही नहीं सकती प्रतिभा स्वयं में अनेकों अवसर को पैदा करने का सामर्थ्य है
"सीमित" को स्वयं के अस्तित्व के बचाव का संघर्ष करना ही होता है,
परन्तु प्रतिभा स्वयं में असीमित, अपरिमित हमेशा स्वयं के विस्तार में विविध नवसर्जन का सामर्थ्य है।
और याद रहे! आप ईश्वर द्वारा रचित विविधताओं से परिपूर्ण विकास की असीम संभावना हो।
- niraj bharatiya 



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