अंतस स्थल पर स्वयं पुष्ट या सिद्ध नहीं हो सकता
किसी से ज्ञान प्राप्त करना और पूर्णविराम की लाइन खींच लेना,
कमोबेस उसी के जैसा ही हो जाना है.....










गुरु द्वारा मिले ज्ञान से भर जाने के बाद, यदि स्वयं के ज्ञान चक्षु का जागरण न हो तो, उन विषय वस्तुओं के बारे में किस प्रकार जाना जा सकता है, जिसे जाना जाना, अभी भी बाकी है।
दुनिया समाज उन्हीं बातों पर भरोसा करती है जसकी सत्यता को गुरु ने पुष्ट किया है, इसके लिए गुरु की जरूरत है, एक ऐसा शिष्य, जो स्वयं के अंतस स्थल पर स्वयं पुष्ट या सिद्ध नहीं हो सकता, उसे स्वयं के संशय को दूर करने के लिए, गुरु ज्ञान की आवश्यकता अवश्य ही पड़ सकती है, परन्तु जिसे अंतस तंत्र की जानकारी, स्वतः अध्यन, अनुभव और वास्तविकता से परे, अलिखित की भी अनुभूति हो चुकी हो, और उसे अंतस स्थित "ईश्वरीय तत्व", सब आत्मा स्वरूप में शिक्षित कर रहा हो, सब किसी अन्य राय की आवश्यकता ही नहीं रह जाती। जिसे स्वयं के अंतस के अलावा, किसी सर्टीफिकेशन की आवश्यकता होती ही नहीं क्यों कि वह स्वयं में परमपिता परमेश्वर से वेरिफिएड होता है।
परन्तु बिना सामाजिक स्तर पर स्वीकृत गुरु के कोई किसी स्वतंत्र विचारक को जल्दी स्वीकार नहीं करता, जब तक कि वह पागलपन की हद तक पहुंचकर एक एक्ट्रिमिंस्ट कि जिंदगी धारण ना कर ले।
किसी गुरु से आरंभिक ज्ञान प्राप्त करके स्वयं की अनुभूति को यदि स्वतंत्र क्रियाशीलता प्रदान न कि जाय तो स्वतंत्र अस्तित्व को कोई उपलब्ध कैसे होगा, कोई भी शिष्य जीवन भर एक ही गुरु से शिक्षा प्राप्त करता रहे तो वह आगे कैसे बढ़ सकता है, किसी से ज्ञान प्राप्त करना कमोबेस उसी के जैसा ही हो जाना है, क्षमता यदि आगे के मार्ग की ओर प्रेरित कर रही हो तो अवश्य बढ़ना चाहिये ।
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