अपितु जीवन के शुरुआती दिनों में ही
यदि प्रैक्टिकल लाइफ को भीतरी तल पर सुकून से जीना है तो "योग साधना" अर्थात "सत्य की साधना" को जीवन के अंत, यानि बुढ़ापे में नहीं, अपितु जीवन के शुरुआती दिनों में ही जीना आवश्यक होगा। जैसे कि वास्तविक जीवन को प्रारंभ काल से ही, सच्चाई से जिया जा सके।
अनंत शुभकामनाएं



No comments