"ब्रम्ह सत्य" के निश्चित आयाम की समझ में संतुष्ट जी सकता है।
जिसे नैसर्गिकता से स्नेह है।
वह हमेशा स्थिर मन,
मान सम्मान की अभिलाषा से मुक्त,
शांत भाव में हंसते रहकर,
'इसके व उसके सत्य से दूर'
की समझ में संतुष्ट जी सकता है।
जिसे नैसर्गिकता से स्नेह है।
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