कहने और समझने का दौर दिशा विहीन हो चुका है।
पाठकों से हमेशा एक अनुरोध है कि किसी भी लेखक, कवि, विचारक, चिन्तक, philosopher, साइकोलोजिस्ट के लेख को स्वकेन्द्रित स्वयं की बुराई के रूप में कभी ना पढ़ें क्यों कि इनका लक्ष्य कभी व्यक्ति विशेष नहीं होता। इनका मंतव्य हमेशा सार्वजनिक अपेक्षित परिवर्तन का होता है।
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आज कहने और समझने का दौर दिशा विहीन हो चुका है।
अतः कुछ भी लिखने में एक हिचक रहती है कि जो लिखने का अर्थ है, वही समझा जाएगा या अर्थ कुछ और निकाला जायेगा। किसी भी अभिव्यक्ति का गलत दिशा में जाने का एक संशय रहता है फिर भी लिखता हूँ, सबको अपना बनाये रखने का चाहत, कभी खुलकर लिखने ही नहीं देती, फिर भी सत्य लिखने के लिए थोड़ा जोखिम तो लेना ही होता है, मैनें लिया भी और अपने लेखन की संरचनात्मकता में अपना बहोत कुछ खोया भी है, छोटे से समयावधि में, मैं स्वभाव से मजबूर! साफ दिल से स्प्ष्ट लिखता हूँ, आज का दौर लिखता हूँ रोज रोज घटित होने वाली घटनाओं के शोध में लिखता हूँ, ना कोई ज्ञान लिखता हूँ न अभिमान लिखता हूँ, बस 365 दिनों के कुछ उलझनों के "चरित्र शोधन" समाधान लिखता हूँ, (samadhannews365.com) इसलिए शायद थोड़ा कड़वा हो जाता होगा पर लिखने के पीछे सर्वजनिक हित ही सोच में रहता है।
"चरित्र शोधन" ही एक मात्र केंद्रीय समाधान है, किसी भी प्रकार की "आपराधिक मनोवृत्ति" को शोधित करने का।
जैसे NEET.की परीक्षा का पेपर लीक का मामला, डॉक्टर रेप का मामला, इस तरह के अनेकों मामले जो अब भी पर्दे के पीछे अपना खेल खेल रहै हैं, परन्तु पकड़ से बाहर है।
इसी तरह की घटनाओं के मद्देनजर एक कोट्स लिखा था....
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"सही और गलत" में फर्क सिर्फ इतना है कि
"सही" अब तक पकड़ा नहीं गया।"
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अब इस कोट्स को पीड़ितों की तरह अपने ऊपर लागू करते हुए पढ़ा जाय तो अर्थ का अनर्थ हो जाएगा।
मैं स्वयं को एक विचार से ज्यादा कुछ नहीं मानता।
हैसियत बस ईश्वरीय सत्ता है जिसने जन्म देने के साथ ही मृत्यु की तिथि निर्धारित करके भेजा है इस शरीर के आगे जीवन यात्रा महात्माओं द्वारा दी गई कुछ तार्किक सूचनाएं हैं जिसके ऊपर का कोई तर्क इन मान्यताओं को मिथ्या साबित कर सकता है। ज्यादा सोचने के लिए कुछ है नहीं दूर से ही सही सबके लिए सद्भाव रखिए।
मन रूपी ग्लास में यथा संभव शीतल व्यवहार रखिये।
पाठकों से हमेशा एक अनुरोध है कि किसी भी लेखक, कवि, विचारक, चिन्तक, philosopher, साइकोलोजिस्ट के लेख को स्वकेन्द्रित स्वयं की बुराई के रूप में कभी ना पढ़ें क्यों कि इनका लक्ष्य कभी व्यक्ति विशेष नहीं होता। इनका मंतव्य हमेशा सार्वजनिक अपेक्षित परिवर्तन का होता है।
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अनंत शुभकामनाएं🙏🌷
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