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भौतिक विकास की गति


 ईश्वर प्रदत्त मौलिकताओं के साथ मानवीय सभ्यता की शुरुआत तक, हमें जो कुछ मिला था, सब निरंकुश व स्वतंत्र था, वही हमारी शरीरी संरचना का प्राकृतिक मूल था, प्रकृति का समग्र हमारे स्वस्थ जीवन के अनुकूल था, हमारी लालसाओं की समझ में हमने स्वयं के लिये जो कुछ भी निर्मित किया सब शरीरी प्राकृतिक मन संरचना के विपरीत ही होता गया, कालांतर आज भौतिक विकास की गति में कुछ भी नैसर्गिक नहीं रहा, जो नैसर्गिक था वह भी हम भौतिक व्यवस्थाओं के प्रभाव में ही उपयोग करते हैं और यही सबकुछ आज तमाम बीमारियों के रूप में हमारे जीवन की बाध्यता बन चुके हैं।


हमारी प्राकृतिक शरीरी व व्यवहारिक बनावट के अनुकूल कुछ भी शेष नहीं रहा। यही मानव जीवन की विह्वलता का प्रमुख कारण है।

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