पता नहीं यह प्रभु की कौन सी लीला है
मेरा किसी भी व्यक्ति से कभी कोई बहोत गहरा संत्राश नहीं रहा, न ही मैं सामाजिक सरोकारों में या किसी सार्वजनिक पब्लिक संपर्कों में ही रहा, पर न जाने क्यूँ और कैसे? मानव जीवन के विभिन्न, ऐसे पहलुओं का, जिसका मेरी जिंदगी के साथ कभी भी कोई व्यवहारिक अनुगमन नहीं रहा, फिर भी ना जाने कैसे, मानवीय वृत्तियों की, सूक्ष्मतम विश्लेषणात्मक अंतर दृष्टि का बोध होता है कि मैं आश्चर्य में होता हूँ, और इस कृत्य से दूर रहने का जितना भी संकल्प करता हूँ यह वृत्ति उतनी ही गहरी होती जा रही है, पता नहीं यह प्रभु की कौन सी लीला है। हे प्रभु मेरा उचित मार्ग दर्शन करें।🙏
कोई बुद्धिलब्ध इस दुविधा का समाधान सुझा सके तो मैं सदा आभारी रहूंगा।
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आज जाने अनजाने में चालांक वृत्तियों को जीते जीते मानवीय व्यवहार में एक ऐसा परिवर्तन हुआ जिसकी कोई आवश्यकता थी ही नहीं परंतु व्यक्तिगत लाभ जीने की आदतों में यह परिवर्तन होना ही था आज सभी एक दूसरे के समक्ष द्वय भाव से सशंकित, बेवजह पारखी स्थिति में खड़े, आत्मरक्षार्थ अंतस्तल पर विश्वास को खोते जा रहे हैं और ऐसा 1 के बाद 2 के बाद 3 के बाद 4,5,6,7,8.....के क्रम में निरन्तर अगली कड़ी में घटित होते रहना ही है और कालांतर हम स्वयं के ही किए के परिणामों में किंकर्तव्यविमूढ़ उलझते ही जायेंगे आज जो व्यक्तिगत लाभ में प्रासंगिक लग रहा है वही कल अप्रासंगिक स्वयं के लिए ही कष्टकारी हो जाएगा क्योंकि यह अपने निकटष्ठ संबंधों के संगत के रंगत के अनुक्रम हमारे अपने बच्चों यानि आने वाली पीढ़ियों के व्यवहार को प्रभावित कर देगा, आने वाले समय मे जैसे जैसे शुभ व्यवहार का मानवीय जीवन से विलोप होता जाएगा, यह विलोप हमारे जेनेटिक कैरेक्टर तक से विलुप्त हो जाएगा, और जन्मतः विकृतियां ही पैदा होने लगेंगी।
ईश्वर ये मुझसे क्यों लिखवा रहा है मैं नहीं जानता, पर मैं अपने विश्लेष्णात्मकता के ईश्वरीय आशीर्वाद व आदेश से इस दुनियां के जिस स्थिति का दर्शन करता हूँ वह बहुत ही भयावह है जो कल्कि के अवतार की अनिवार्यता तक दृष्टिगत हो रहा है।
प्रभु मेरा उचित मार्गदर्शन करें....
🙏🌷
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