सत्य को "जानने" की राह पर
"इस सत्य को "मानना" जरूरी है,
इस सत्य को "जानने" की राह पर
निकलने की भूल कभी ना करना",
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परमात्मा के बारे में ज्यादा जानने की जरूरत ही नहीं
जितना जानते हैं उतना ही , सामर्थ्य है इससे ज्यादा जानने की चेष्ठा, सारा सांसारिक सुख छीन लेगी, परमात्मा पूजनीय है, इसी के वजह से सब घटित हो रहा है।
"इस सत्य को "मानना" जरूरी है,
इस सत्य को "जानने" की राह पर
निकलने की भूल कभी ना करना",
जीवन जीने के लिए जो करना जरूरी है,
उतना ही कर लो, वही काफी है,
बस हो सके तो प्रेम इकट्ठा करते रहना,
वो भी बिना किसी उम्मीद के,
और यहीं एक बात साफ साफ समझ लो,
परमात्मा रूपी परिणामों का जन्म
गति से ही होता है,
जहां गति नहीं वहाँ दुर्गति है,
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एक बात और, कृत्य का परिणाम अच्छा या बुरा मिलना ही मिलना है, यदि कर्म गलत नहीं है तो कुछ अप्रत्याशित या अप्रिय घटित होने के बाद भी, परिणाम प्रतिरक्षा में ही होगा। यही प्रकृति का शाश्वत सत्य नियम है।
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और किसी भी गति में बार बार की बाधा में भी गतिशीलता ही एक मात्र समाधान है,
भगवान एक ऊर्जावान विचार है, आस्था है,
जो आगे बढ़ने की इच्छा को बल देता है।
यदि ईश्वर में आस्था नहीं, ईश्वर विचार में नहीं तो, आसानी से हल हो जाने वाला काम भी हल नहीं होगा।
जब भी कुछ मनोनुकूल नहीं हो रहा हो तो दोष,
सिर्फ "गतिहीनता" का होगा।
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अनंत शुभकामनाएं 🙏🌷
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