यह बात जानने वाली है!
की कुछ भी कितना भी प्रिय,
क्यों न हो,
उपयोगी न हुआ तो,
पसंद से बाहर का विषय होकर,
भीतर से प्रयाण कर जाता है,
अब बाहर से बस औपचारिकता, बाद्धयता भाव से उसके मौजूदगी का अभिवादन करती है।
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