महात्माओं की खोज अधूरी ही
परमात्मा को प्रत्यक्ष देखने की लालसा रखने वाले सभी महात्माओं की खोज अधूरी ही उनके शरीरी जीवन की पूरी अवस्था के उस पार भी शायद यही खोज रही हो, पर भगवान तो प्रत्यक्ष न दिखेगा, भगवान को तो बस समग्र शुभ के पुरुषार्थ में ही देखा जा सकता है।
तर्क वह मानवीय बौद्धिक प्रक्रिया है, जो अपने खोज के किसी भी बिंदु पर स्थिर नहीं होती, बुद्धि जब तक किर्याशील होगी, नए नए तर्कों से स्वयं की ही पुरानी बातों को काटती रहेगी, परन्तु ईश्वर का सर्वश्रेष्ठ विज्ञान ही शिखरतम स्थित सर्वोच्च विज्ञान है।
खाने को पाचन प्रक्रिया में डाल कर खून बनाना ईश्वर के निर्माण की शाश्वत प्रक्रिया है।
अभी विज्ञान यहां तक भी नहीं पहुंच पाया।
इसी प्रकार न जाने कितने चमत्कार ईश्वर ने गठित किया है, जहां पहुँचपाने की कल्पना भी विज्ञान नहीं कर सकता।
विज्ञान जो भी रचित करता है उसका आधार कल्पना है, इन्हीं कल्पनाओं को रेखांकित कर प्रकृति के विज्ञान की सहायता से ही मूर्त रूप दे पाना सम्भव है।
जबकि ईश्वर कल्पनातीत निर्विकार गुणों का भंडार है, ईश्वर के इन्हीं गुणों के आधार पर उनके देह की रचना की गई है।
हर निर्माण का अंत, मृत्यु! शाश्वत अनंत प्रक्रिया है। ईश्वर अपने नियम कभी नहीं बदलता, ब्रम्हाण्ड की समग्र व्यवस्थाएं अनादि काल से एक बार के सृजित मौलिक विज्ञान के आधार पर आज तक घटित होती आ रही हैं।
टूटी हुई हड्डियां आज जोड़ने के लिए धन खर्चना होगा, पूर्व में इसे लकड़ियों की खपचियों से सीधा बांधकर जोड़ दिया जाता था, यानि मानवीय सारी व्यवस्थाएं आज भी जड़ में वही ईश्वरीय व्यवस्थाएं ही हैं।
भौतिकता की प्रगति कितनी भी ऊंचाइयां प्राप्त कर ले, निर्भरता का मूल ईश्वरीय विज्ञान अर्थात प्रकृति का विज्ञान ही है। हमारे द्वारा खोजी गई हर चीज पहले से ही अस्तित्व में है या थी हमने बस उसे पहचानकर अपना नाम दिया है।
प्रणाम है ऐसे खोजकर्ताओं को, जिन्होंने प्रकृति की व्यवस्थाओं से जीवनोपयोगी वस्तुओं को निर्मित किया।
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किसी भी वस्तु को उड़ाने का विज्ञान, प्रकृति में पहले से विद्यमान है, किसी वस्तु पर गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से दूर कर, हवा में तैराया जाना, प्रकृति की ही व्यवस्था है, और हवा में तैरने के विज्ञान को पुष्ट करके, वस्तु पर पड़ रहे हवा के दबाव को, वस्तु के गमन की विपरीत दिशा में फेंकना, ही तो प्रकृति का विज्ञान है किसी भी वस्तु को उड़ाने के लिए इन्हीं मौलिक सिद्धांतों को ही तो समामेलित किया जा रहा है, यानि ईश्वर की तमाम व्यवस्थाएं ही किसी भी युग में किसी भी खोज का मूलभूत आधार है।
सब प्रकृति में विद्यमान ऊर्जाओं का खेल है इसलिये कोई भी महात्मा चाहे जितने तर्क दे, ईश्वर ही सर्वश्रेष्ठ है, ईश्वर द्वारा प्रदत्त बुद्धि के ही इस्तेमाल से ईश्वर के अस्तित्व को चैलेंज करना महात्माओं की परम अतार्किकता के आलावा कुछ भी नहीं।
बुद्ध को भी अपने तमाम तर्कों के उपरांत, भगवान के निश्चित स्वरूप को छोड़कर, ईश्वर के ऊर्जा अस्तित्व को स्वीकारना पड़ा।
रही बात भगवान के स्वरूप की तो आज किसी भी व्यक्ति के बताए गए आधार पर एक चित्रकार किसी अपराधी की हूबहू तस्वीर बना दे रहा है और उसी आधार पर रेखंकित व्यक्ति पकड़ा भी लिया जा रहा है तो हमारे प्रभु जिसकी शक्तियों के अनेकों प्रमाण हमारे पास हैं और तत्कालीन चित्रकारों ने हमारे भरभु के गुणों के आधार पर ब्रम्हा, विष्णु व महेश की जो तस्वीरें बनाई वह निःसंदेह हमारे प्रभु की सत्य तस्वीरे है।
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कोई किसी का नहीं है, प्रचारित कर, इन्होंने पूरी दुनिया से भीड़ इकट्ठा किया, और अपने लाखों अनुयायियों के समर्थन से ही तो जिया। कोई भी युग ईश्वर की कृपा से ही सृजित है।
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अनंत शुभकामनाएं🌷🙏
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