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वास्तविक व सच्चा स्थान ही

 


संबंधों का हृदय में, 

वास्तविक व सच्चा स्थान ही, 

संबंधों के प्रति सच्ची आस्था हो सकती है। 


जब तक 

साँप को मार कर, 

डंडे को सहेजते रहने के, 

मनोभाव को जिया जाता रहेगा, 

तब तक स्वस्थ संबंधों के आयाम,

कभी भी स्थापित नहीं हो सकेगा।


जब तक 

बाहर से साथ और भीतर से घात,  

की भावना से बाहर नहीं होंगे, 


तब तक,

स्वस्थ संबंधों की मानवीय या 

नैतिक व्यवस्था पुनर्स्थापित नहीं हो सकेगी।


स्वस्थ संबंध ही, समृद्ध जीवन की, आधारशिला है।


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अनंत शुभकामनाएं🌷🙏

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