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तत्क्षण सर्वनाश कर सकता है

 सत्य स्वयं के सत्य के साथ, 

बिना प्रमाण के भी स्थापित है।

असत्य को हर कदम पर प्रमाण देना होता है।

सत्य अपने सत कर्मों के साथ खामोश भी है तो भी, 

असत्य ही स्वयं के असत्य में, 

सत्य को खुद ब खुद सत्य साबित करता है।

जैसे हर अंधकार 

हर सूर्योदय के साथ बेनकाब होता है।


जिस स्तर पर असत्य सक्रिय होता उसी स्तर पर सत्य खामोश रहकर भी बड़े आराम से असत्य को बाधित कर देता है।

विकास के इस दौर में भी असत्य की वीभत्सता, इतना बुद्धिलब्ध हो ही नहीं सकती कि वह सत्य की शुद्धता की बुनियाद ही खंडित कर सके।

सत्य, सत्य इसलिए है कि वह सकारात्मक सत्य स्वयं ईश्वरीय मन वृत्ति के रूप में स्वयं ईश्वर है, जबकि असत्य तो है ही ईश्वर विरोधी मन वृत्ति, जिसकी बुनियाद में ही प्रभु अनुपस्थित हों, वह कितनी देर टिक सकता है।

सत्य चाहे तो असत्य का तत्क्षण सर्वनाश कर सकता है, ईश्वर ने ही सत्य को अप्रत्यक्षतः इतना सामर्थ्यवान बना रखा है, पर वह नियमों की मर्यादा के विपरीत स्वयं की शक्तियों का दुरुपयोग नहीं करता। 

मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम ने चाहा होता तो बिना किसी युद्ध के रावण को मार दिया होता, परन्तु उन्होंने सर्वदा मानवीय मर्यादाओं के अनुसरण में सत्य मार्ग को ही चुना।

सत्य के नाम में ही इतना ओज होता है कि उसके विपरीत असत्य कुछ भी कह दे, उसे सिर्फ असत्य वृत्तियां ही असत्य मान सकती हैं।

असत्य के सत्य परिवर्तन की अनेकों कहानियां सुनी जा चुकी हैं परन्तु सत्य सर्वदा निर्भय अपनी मौलिकता में स्थित है।

नीरनीरज✍️🌷🙏

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