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मुश्किलें निश्चित ही



सुख पाने के प्रयासों में आने वाली मुश्किलें निश्चित ही 

करनी का ही फल होता है।

कर्म का उद्देश्य अच्छा हो या बुरा हो। इच्छाओं की ओर बढ़ने वाले कदम सुखदायी या दुखदायी दोनों हो सकते हैं परंतु मुश्किलों से निकलने में प्रायः परस्पर संबंधित लोग ही ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में सहायक होते हैं। कोई संबंधों के वजह से सहायक होता है, तो कोई स्वयं के करुणा की वजह से, तो कोई आत्म दिव्यता की वजह से, तो कोई ईश्वरीय भाव से...


ऐसे सभी सहयोगियों का सादर सम्मान सीधा ईश्वर के सम्मान जैसा ही है।

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बुरा कहे जाने की तथ्यपरक अथवा तथ्य से परे कई वजहें हो सकती हैं।

परन्तु अच्छा कहे जाने की सिर्फ एक सांसारिक वजह "ज्यादा से ज्यादा लोगों को" प्रसन्न रखना है।

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यदि किसी को खुश रखना नहीं जानते तो तुम्हारे अच्छे होने की बात सिर्फ ईश्वर ही जान सकता है।

क्यों कि संसार में कुछ भी साबित करने के लिए झूठा या सच्चा सबूत तो देना ही होता है।

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हर व्यक्ति के भीतर ईश्वरीय अंश है अतः हर व्यक्ति का सम्मान ईश्वर का ही सम्मान हुआ, हर व्यक्ति के भीतर ईश्वर ही है, तो व्यक्ति का सम्मान तब भी होना चाहिए, जबकि वह संसारिकता के प्रभाव में किसी की उपेक्षा ही क्यों ना कर रहा हो ।


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अनंत शुभकामनाएं 🙏🙏🌷

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