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अनुभूति का विषय

स्वमन गति अनुभूति का विषय

 यह स्वयं में अनुभव करने वाली बात है कि जन्म होने से लेकर जिस भी अवस्था में हम हैं हमारी जानकारियों के आलावा हम सिर्फ कोरे पन्नों की डायरी से ज्यादा कुछ भी नहीं, यह बात अलग है कि हमारे व्यवहार में पूर्व जन्म की स्मृतियों के आधार पर हजारों मनोवृत्तियां हमारे अवचेतमन मन मे स्थित ईश्वरीय व्यवस्थाओं में वर्तमान जन्म में पूर्णतः विस्मृत रहती है और उन्हीं पूर्व जन्म के संस्कारों के प्रभाव में हमारा तत्कालीन व्यवहार है गुस्से वाला होना, नम्र होना, चालांक होना आदि इत्यादि इसके अलावा जो कुछ भी जन्म के समय पर रहता है सब सादे पन्नों की डायरी से अलग कुछ भी नहीं। 

बड़े होने के साथ जिन जिन माहौल को जिया जाता है,( घर से लेकर विद्यालय तक, समाज, मानवीय संबंध इत्यादि) , अच्छा बुरा उसी के अनुसार विचार पुष्ट होते रहते हैं यानि व्यक्तिगत कुछ भी नहीं यह शरीर या इस शरीर से जुड़ी कोई भी चीज नहीं सब इसी दुनिया के सबकुछ से प्राप्त जानकारी व उसका अभ्यास ही अवचेतमन मन में है, वही व्यवहार का निर्धारण करती है। वहीं कुछ संकल्पों और सामान्य अभ्यास की निरंतरता में अवचेतमन मन की स्थिति को पुनः निर्मित किया जा सकता है।

अवचेतन मन की तात्कालिक स्थिति की जो गति है उसी प्रभाव में मन विचार या सोच निर्मित करता है और बुद्धि को स्वयं के अनुसार चलाने का दबाव भी बनाता है और बुद्धि निर्णायक होती है इसीलिए किसी भी निर्णय तक पहुंचने में आगे पीछे करती रहती है यदि मन के दबाव की तीव्रता, बुद्धि के संकल्पों से ज्यादा दृढ़ हुई तो बुद्धि मन के वश में सही या गलत निर्णय लेकर उसी निर्णय के अनुसार कृत्य के निरन्तर अभ्यास में सही या गलत पुष्ट होकर संस्कार निर्मित होता है और इसी गति में स्वयं के लिये अच्छा या बुरा सब स्वयं ही निर्मित करता है।


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