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प्रतिकूल परिस्थियां देखकर भयभीत होना

 भय एक तात्कालिक भाव है

जो प्रतिकूल परिस्थियां देखकर भयभीत होता तो है, परन्तु उस परिस्थिति से बाहर आते ही, यह भाव धींठाई में परिवर्तित हो जाता है। भय यदि निरंतर जागृत अवस्था में हो तो गलतियों की बारंबारता पर न जाने कब का विराम लग चुका होता।


भगवान का भय भी कुछ ऐसा ही है अन्यथा पाप से निवृत्त होने का अनुष्ठान की क्या आवश्यकता?


जब स्वयं के सामर्थ्य के बाहर का विषय होता है, तो भय जन्म लेता है। भगवान की पूजा से कार्य सिद्ध हुआ, पुनः उसी गतिविधियों में लिप्त हो गए क्योंकिं अब तो विश्वास हो गया कि कुछ चढ़ावे से भगवान भी मान ही जाता है, अब भय किस बात।

भयभीत रहना चाहिए अनुशासन जिंदगी के लिए आवश्यक है।

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