प्रकृति के न्याय व्यवस्था का केंद
बाहर कुछ भी दिखे
भीतर तो सत्य ही है
और भीतर का यही सत्य
प्रकृति के न्याय व्यवस्था का केंद है।
जहां किसी बाहरी सबूत की आवश्यकता ही नहीं।
प्रकृति के निर्णय में किसी भी प्रकार की कोई चूक संभव ही नहीं।
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सार्थक विचार का सामर्थ्य
इतना है कि वह किसी भी शरीर को
निरोग रख सकता है।
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