इच्छाओं की भरमार है
वो जो भीतर इच्छाओं की भरमार है वैसे ही बाहर अर्थात भौतिक दुनियां के समक्ष नहीं होते, हम बाहर सिर्फ वही दिखाना चाहते हैं जो सामाजिक नियमों के अनुसार आदर्श की श्रेणी में आता है बाकी इच्छाओं को भीतर जागृत अवस्था मे लिये हुए भी अंदर ही रखते है जबकि वे सारी इच्छाएं भौतिक प्रभाव में इन्द्रिय वासना(इच्छा) सर ही उद्भूत है।
इन्द्रिय प्रभाव में किसी भी इच्छा का उतपन्न होना गलत नहीं यदि सत्य के सामान्य नियम के अनुरूप आदर्श हैं। यह प्रकृति की व्यवस्थाएं है सृष्टि के सुचारू संचालन हेतु। काम वासना क्या स्वयं में गलत है कत्तई नहीं यदि यह मर्यादा की सीमा में है
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