कितना खोखला है वजूद की लड़ाई का सच
नजरअंदाजी का मन है कि भरता ही नहीं।
़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़
कितना खोखला है वजूद की लड़ाई का सच
पाकिस्तान हो‚ ईरान हो‚ इराक हो‚ इज्राइल हो‚ चीन हो‚ अमेरिका हो‚ रूस हो‚ यूक्रेन हो‚ या अन्य कोई भी राष्ट्र‚ सभी एक दूसरे को बौना साबित करने को तुले हुए हैं।
़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़
विकास के इस वैश्विक शिखर पर पहुँचने के पश्चात‚ यदि गौर किया जाय की पूरी दुनियाँ में हो क्या रहा है‚ तो एक हास्यास्पद सच दिखाई देता है‚ एक दूसरे को निपटा देने की जुगत। किसको किस तरह से समाप्त कर‚ स्वयं का साम्राज्य स्थापित किया जाए‚ कैसे स्वयं की सर्वोपरिता का लोहा मनवाया जाय से ज्यादा कुछ दिखाई ही नहीं देता
क्या विकास का सही मायना यही है?
पाकिस्तान हो‚ ईरान हो‚ इज्राइल हो‚ चीन हो‚ अमेरिका हो‚ रूस हो‚ यूक्रेन हो‚ या अन्य कोई भी राष्ट्र हो] सभी एक दूसरे को बौना साबित करने को तुले हुए हैं।
कारण मात्र एक है स्वयं के वजूद की लड़ाई‚
जबकी इस वजूद की लड़ाई का सबसे बड़ा सत्य है कि
प्रकृति जरा सा भी मुॅह मोड़ ले तो‚ सारे विकास यहीं के यहीं धरे के धरे‚ रह जाएंगे।
हमारे वजूद के ʺवʺ की भी सुरक्षा हम नहीं कर सकते।
कितना खोखला है वजूद की लड़ाई का सच ।
आवश्यकता है
कूटनीति से परे वैश्विक विचारधारा शोधन की‚
समग्र के विकास को सुरक्षित करने की‚
परस्पर एक दूसरे के सहयोग की‚
प्रकृति संरक्षण के योग की‚
मिटना तो है ही उस मिटने को कोई नहीं रोक सकता‚
पर मिटने से पहले ही मिट जाने की कवायद
बुध्दिलब्ध दुनियां की दिशाहीन विकास यात्रा है।
सब युगों युगों से लड़ते और मिटते आ रहे हैं।
मानवीय जीवन शैली के आमूल चूल परिवर्तन से ही
पूरी दुनियां का उद्धार सम्भव है।
जब तक पूरी दुनियां
एक साथ एक ही मंच पर
एक दूसरे के परस्पर सहयोग के
प्राकृतिक व्यवस्था में नहीं होगी।
आगे भी युगों युगों तक वर्चस्व की दिशाहीन लड़ाईयां चलती ही रहेगीं।
प्राप्ति वही
ʺढाक के तीन पातʺ
आवश्यकता है
पेड़‚ पौधों‚ हवाओं‚ जमीनों‚ आसमानों‚ आकाशों‚ सूरज‚ चांद‚ सितारों‚ कीड़े मकोड़ों‚ चींटियों‚ जानवरों से या
इस ब्रम्हाण्ड के समग्र से सीखने की‚
एक आम के पेड़ को क्या मिलता है सालों साल खड़े प्रकृति से सामजस्य जीने में।
सोचने वाली बात है
पर नजरअंदाजी का मन है कि भरता ही नहीं।
#nirajchitravanshi
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कितना खोखला है वजूद की लड़ाई का सच
पाकिस्तान हो‚ ईरान हो‚ इराक हो‚ इज्राइल हो‚ चीन हो‚ अमेरिका हो‚ रूस हो‚ यूक्रेन हो‚ या अन्य कोई भी राष्ट्र‚ सभी एक दूसरे को बौना साबित करने को तुले हुए हैं।
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विकास के इस वैश्विक शिखर पर पहुँचने के पश्चात‚ यदि गौर किया जाय की पूरी दुनियाँ में हो क्या रहा है‚ तो एक हास्यास्पद सच दिखाई देता है‚ एक दूसरे को निपटा देने की जुगत। किसको किस तरह से समाप्त कर‚ स्वयं का साम्राज्य स्थापित किया जाए‚ कैसे स्वयं की सर्वोपरिता का लोहा मनवाया जाय से ज्यादा कुछ दिखाई ही नहीं देता
क्या विकास का सही मायना यही है?
पाकिस्तान हो‚ ईरान हो‚ इज्राइल हो‚ चीन हो‚ अमेरिका हो‚ रूस हो‚ यूक्रेन हो‚ या अन्य कोई भी राष्ट्र हो] सभी एक दूसरे को बौना साबित करने को तुले हुए हैं।
कारण मात्र एक है स्वयं के वजूद की लड़ाई‚
जबकी इस वजूद की लड़ाई का सबसे बड़ा सत्य है कि
प्रकृति जरा सा भी मुॅह मोड़ ले तो‚ सारे विकास यहीं के यहीं धरे के धरे‚ रह जाएंगे।
हमारे वजूद के ʺवʺ की भी सुरक्षा हम नहीं कर सकते।
कितना खोखला है वजूद की लड़ाई का सच ।
आवश्यकता है
कूटनीति से परे वैश्विक विचारधारा शोधन की‚
समग्र के विकास को सुरक्षित करने की‚
परस्पर एक दूसरे के सहयोग की‚
प्रकृति संरक्षण के योग की‚
मिटना तो है ही उस मिटने को कोई नहीं रोक सकता‚
पर मिटने से पहले ही मिट जाने की कवायद
बुध्दिलब्ध दुनियां की दिशाहीन विकास यात्रा है।
सब युगों युगों से लड़ते और मिटते आ रहे हैं।
मानवीय जीवन शैली के आमूल चूल परिवर्तन से ही
पूरी दुनियां का उद्धार सम्भव है।
जब तक पूरी दुनियां
एक साथ एक ही मंच पर
एक दूसरे के परस्पर सहयोग के
प्राकृतिक व्यवस्था में नहीं होगी।
आगे भी युगों युगों तक वर्चस्व की दिशाहीन लड़ाईयां चलती ही रहेगीं।
प्राप्ति वही
ʺढाक के तीन पातʺ
आवश्यकता है
पेड़‚ पौधों‚ हवाओं‚ जमीनों‚ आसमानों‚ आकाशों‚ सूरज‚ चांद‚ सितारों‚ कीड़े मकोड़ों‚ चींटियों‚ जानवरों से या
इस ब्रम्हाण्ड के समग्र से सीखने की‚
एक आम के पेड़ को क्या मिलता है सालों साल खड़े प्रकृति से सामजस्य जीने में।
सोचने वाली बात है
पर नजरअंदाजी का मन है कि भरता ही नहीं।
#nirajchitravanshi
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