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मैं, मेरा और पैसा से अलग भी कुछ हो जाए।

 काश!

मैं, मेरा और पैसा से अलग भी कुछ हो जाए।
आवश्यकता है दृढ़ता से जागने की।
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ये आत्मा परमात्मा, सत्य- असत्य, जीवन- मृत्यु,
मोक्ष, प्रकृति, ध्यान, सही-गलत, नैतिक -अनैतिक, उचित-अनुचित, मोह-माया, जन्म से पहले -मृत्यु के बाद इत्यादि के बारे में ही रुचि क्यों है, नहीं जानता जीवन जैसे पहले था, वैसे ही आज भी है, परिवार के साथ रहना, परिवार के प्रति दायित्वों को पूरा करते हुए आगे बढ़ना इत्यादि सब पहले जैसा ही है।
विचारों के इस परिवर्तन के पश्चात भी सब पहले जैसा ही है, वही लोग, वैसे ही संबंध, मेरी ओर से भीतर तल पर वही आत्मीयता, हाँ जताना और बताना नहीं आता, कहीं भी किसी प्रकार की कोई विसंगति नहीं वही कार्यशैली, वही विश्वास, जीवन में सब अच्छा होने के बावजूद "मन" न जाने क्यों जीवन के औचित्य को जानना चाहता है ..…
परमात्मा द्वारा मिले इस जीवन का इतना साधारण औचित्य तो नहीं हो सकता। जितना साधारण जी रहा हूँ ज्यादातर व्यक्तिगत के लिए या जीविकोपार्जन के लिए ही दिखाई पड़ता है।
एक चींटी से जब स्वयं की तुलना करता हूँ तो पाता हूँ कि एक चींटी का जीवन सरोकार निःस्वार्थ जहाँ से उद्भूत है उसी को समर्पित भी है। चींटी प्रकृति से उत्पन्न प्रकृति की संरक्षा में अपने छोटे से जीवन काल को सम्पूर्ण प्रकृति के नाम कर देती है। जब स्वयं की ओर देखता हूँ तो अबतक का सारा जीवन व्यक्तिगत लाभ की ओर ही दिखता है व्यक्तिगत लाभ में जीविकोपार्जन तो नितान्तता है पर जिस सृष्टि से अपना जीवन है अपनी सांसे हैं उसे कुछ दे पाने की सोच में कलम एक जरिया समझ में आया जहां कुछ खुद समझू, समझ में आने के साथ जो कुछ भी व्यवहार में आए वो बढ़ता जाए इसी उद्देश्य से मेरी समझ से कुछ लिखने को प्रेरित होता हूँ। जिसमें मन ज्यादातर सत्य और शांति की ओर भागता है।
अब यह लिखना कितना सार्थक हो सकता है
यह भी नही जानता,
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बस एक कोशिश है,
मैं, मेरा और पैसा से अलग भी कुछ हो जाए।
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इसी खोज में मनःस्थिति शांति सूत्र को समझने, जीवन के प्रयोजन को समझने, जन्म का सार जानने की ओर जाती जा रही है।
ऐसा क्यों हो रहा है?
यह जानने की कोशिश में, हमेशा स्वतः प्राकृतिक प्रवाह ही दिखाई पड़ता है। कोई विशेष स्थिति या कारण, इस ओर आने को प्रेरित नहीं करते, बस ऐसा प्रतीत होता है कि, इस ओर आना ही जैसे इस जीवन की स्वाभाविकता है।
जीवन के औचित्य के खुलासे की ओर ध्यान के रास्ते भीतर के भी भीतरतम तल के घुप्प अंधेरे से उद्भूत प्रकाश का दर्शन वाकई दिव्य है।
ध्यान के गहरे तल की ओर, भीतर की यात्रा में सब शांत, स्थिरता की व्यपकता में, सब प्राप्त होने का सुकून, वास्तव में एक अविश्वसनीय सुखद अनुभव है। जिसे अभिव्यक्त करना कत्तई सहज नहीं है।
मन के कौतूहल को शांत करने के लिए, किसी एक बर्तन में पानी भरकर छोड़ दें, अब उस बर्तन में स्थिर पड़े पानी को ध्यान से देखिए, पानी की यह स्थिरता, ध्यान में होने के दौरान, बर्तन के भीतर भरे पानी में, एक अद्भुद शांति का अनुभव कराती है, जहाँ विचारों की सारी भाग दौड़, बेचैनियों से उन्मुक्त जीवन, जैसे युगों युगों से इसी तलाश में भटक रहा हो।
सारे आश्चर्यजनक चमत्कार सब सच हैं, सब सम्भव है, जैसे भौतिक जीवन में कुछ भी प्राप्त करने के लिए, कर्म की दृढ़ता आवश्यक है, ठीक वैसे ही आध्यात्मिक जीवन में सारे असंभव प्रतीत होने वाली घटनाएं भी संभव है, आवश्यकता है दृढ़ता से जागने की।
niraj chitravanshi✍️🌷🙏

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