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कर्म की गति ईश्वरीय सत के सापेक्ष हुई तो

 ईश्वर का कोई हस्तपक्षेप नहीं है,

कोई कैसा कर्म करे, यह तो जन्मतः परिस्थितियों से स्वयं निर्धारित होता है, जन्म के आगे की गति अवचेतन मन में पूर्व जीवन से संग्रहित संस्कार व वर्तमान जीवन की संगति से निर्मित होता है।
वहीं यदि उक्तानुसार कुछ मनोनुकूल जो चाहते हैं, उसे निरंतर ईश्वरीय साधना की आभा के प्रभाव में
कर्म की गति को स्वतः सत की ओर मोड़ा जा सकता है। यदि कर्म की गति ईश्वरीय सत के सापेक्ष हुई तो जीवन का सब स्वतः उत्कृष्ट ही होगा।
बावजूद इसके की जीवन के आरंभिक योग सफलता के सापेक्ष न रहे हों।

niraj chitravanshi
nirved

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