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झुंड ठहाके लगा रहा होता है

 बहुसंख्या में मूर्खों का झुंड ठहाके लगा रहा होता है तो उन मुखमंडलों की बकलोल आभा देखने योग्य होती है ऐसा प्रतीत होता है कि ना जाने कौन सी उपलब्धि के वारियर्स एकत्रित होकर‚ ना जाने किस परिवर्तन का बिगुल फूंक रहे हैं, अरे देश के लंठाधीशों कब बाक्लोलियों से ऊपर आओगे।


नीरज चित्रवंशी

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