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वास्तव में खुशियों का कोई अंतिम मकाम नहीं होता

 खुशियों को इकट्ठा करने,

थोड़ी दूर निकल आए।
तो जाना की, जहां थे,
वहीं फिर चले आए।
वास्तव में खुशियों का
कोई अंतिम मकाम नहीं होता,
एक मिल भी जाए तो क्या,
बेचैनियां फिर भी रहती है।
जब तक
नए का इंतजाम नहीं होता।

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