संगीत की धुन पर थिरकना चाहता है
खुद को खुद के शरीर और नाम से ही देखते रहे तो खुद से कभी भी नहीं मिल पाओगे, यह शरीर एक अवसर है, खुद से मिलने का।
तुम्हारे भीतर से जो भी तुम्हें गति दे रहा है, वास्तव में वही तुम हो जो आईने में दिखता है, तुम वो नहीं बल्कि तुम तो, स्वयं के शब्दों में हो, तुम तो इस शरीर की गति हो, तुम इस शरीर का वजूद हो, तुम नहीं तो ये शरीर भी किसी काम की नहीं।
तुम एक शरीर नहीं,
तुम शरीर की गति हो
कौन है जो किसी संगीत की धुन पर थिरकना चाहता है, कौन है फूलों की खुश्बुओं में घुलने चाहता है, कौन है जो आसमानों में आजाद पंछियों की भांति उड़ना चाहता है कौन है जानो ...
मानव शरीर एक अवसर है
एक सौभाग्य है
स्वयं से मिलने का।
यदि स्वयं से मिल पाए,
तो परमात्मा के अस्तित्व का
सत्य भी समझ में आएगा।
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